सोमनाथ - चंद्रमा हुआ जहां शाप मुक्त

 बाबा भोलेनाथ की मानस यात्रा पर इस बार चलते हैं उस स्थान पर जिस पर 17 बार विधर्मियों ने हमले किये और हर बार बाबा भोले के भक्तों ने पहले से दिव्य और भव्य धाम का निर्माण किया।

आज बात करेंगे गुजरात के प्रभास क्षेत्र में सागर के किनारे ज्योति रूप में विराजमान भगवान आशुतोष जिन्हें सोमनाथ कहकर यहां पूजा जाता है। सोम चंद्रमा को कहा जाता है, चंद्रमा ने अपना सर्वस्व नाथ मानकर उनकी पूजा की थी,इसलिए सोमनाथ ज्योतिलिंग इसका नाम पड़ा।

यह स्थान भगवान गौरी शंकर की कृपा से चंद्रमा की क्षय के श्राप से मुक्ति का स्थान है।

 पहले यह क्षेत्र प्रभासक्षेत्र के नाम से जाना जाता था। यहीं भगवान्‌ श्रीकृष्ण ने जरा नामक व्याध के बाण को निमित्त बनाकर अपनी लीला का संवरण किया था।

कथा चंद्रमा के श्राप मुक्ति की

दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएं थीं। उन सभी का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। किंतु चंद्रमा का समस्त अनुराग व प्रेम उनमें से केवल रोहिणी के प्रति ही रहता था। उनके इस कृत्य से दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत अप्रसन्न रहती थीं। उन्होंने अपनी यह व्यथा-कथा अपने पिता को सुनाई। दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया। 

 किंतु रोहिणी के वशीभूत उनके हृदय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः दक्ष ने कुद्ध होकर उन्हें 'क्षयग्रस्त' हो जाने का शाप दे दिया। इस शाप के कारण चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त हो गए। उनके क्षयग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता वर्षण का उनका सारा कार्य रूक गया। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। चंद्रमा भी बहुत दुखी और चिंतित थे। 

 उनकी प्रार्थना सुनकर इंद्रादि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण उनके उद्धार के लिए पितामह ब्रह्माजी के पास गए। सारी बातों को सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- 'चंद्रमा अपने शाप-विमोचन के लिए अन्य देवों के साथ पवित्र प्रभासक्षेत्र में जाकर मृत्युंजय भगवान्‌ शिव की आराधना करें। उनकी कृपा से अवश्य ही इनका शाप नष्ट हो जाएगा और ये रोग शोक मुक्त हो जाएंगे।

उनके कहे अनुसार चंद्रदेव ने मृत्युंजय भगवान्‌ की आराधना का सारा कार्य पूरा किया। उन्होंने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जप किया। इससे प्रसन्न होकर मृत्युंजय-भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया। उन्होंने कहा- 'चंद्रदेव! तुम शोक न करो। मेरे वर से तुम्हारा शाप-मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी। 

 कृष्णपक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, किंतु पुनः शुक्ल पक्ष में उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी। इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा।' चंद्रमा को मिलने वाले इस वरदान से सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे। सुधाकर चन्द्रदेव पुनः दसों दिशाओं में सुधा-वर्षण का कार्य पूर्ववत्‌ करने लगे।

 शाप मुक्त होकर चंद्रदेव ने अन्य देवताओं के साथ मिलकर मृत्युंजय भगवान्‌ से प्रार्थना की कि आप माता पार्वतीजी के साथ सदा के लिए प्राणियों के उद्धारार्थ यहाँ निवास करें। भगवान्‌ शिव उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके ज्योतर्लिंग के रूप में माता पार्वतीजी के साथ तभी से यहाँ रहने लगे।

पावन प्रभासक्षेत्र में स्थित इस सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कन्दपुराणादि में विस्तार से बताई गई है। 

फलश्रुति 

इनके दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप और दुष्कृत्यु विनष्ट हो जाते हैं। वे भगवान्‌ शिव और माता पार्वती की अक्षय कृपा का पात्र बन जाते हैं। मोक्ष का मार्ग उनके लिए सहज ही सुलभ हो जाता है। उनके लौकिक-पारलौकिक सारे कृत्य स्वयमेव सफल हो जाते हैं।

 सातवीं बार यह मंदिर कैलाश महामेरु प्रसाद शैली में बनाया गया है। इसके वर्तमान स्वरूप में देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल का बड़ा योगदान है।

मंदिर है विशेष 

यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। इसका 150 फुट ऊंचा शिखर है। इसके शिखर पर स्थित कलश का भार दस टन है और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है। 

इसके अबाधित समुद्री मार्ग- त्रिष्टांभ के विषय में ऐसा माना जाता है कि यह समुद्री मार्ग परोक्ष रूप से दक्षिणी ध्रुव में समाप्त होता है। यह हमारे प्राचीन ज्ञान व सूझबूझ का अद्‍भुत साक्ष्य माना जाता है। 

विध्वंस और निर्माण की गाथा,अगली बार...

तब तक के लिए 

जय शम्भो

।।शिव।।

Comments

Manoj said…
हर हर महादेव
आप सभी का आभार।
हर हर महादेव
Kalpna said…
Jai shiv shambo

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