अचलेश्वर महादेव -जहां होती है भोलेनाथ के अंगूठे की पूजा
अंगूठे की होती है जहां पूजा,शिवलिंग बदलता है दिन में तीन बार रंग ऐसे ही दिव्य शिव धाम की मानस यात्रा पर आज चलते है।
भगवान आशुतोष की महिमा और माया कौन जान पाया है। जितने उनके भक्त,उतनी ही प्रगाढ़ आस्था और आस्था ने बनाएं उनके दिव्य धाम और जितने शिवालय उतनी ही उनकी विशिष्ठ कथा।
आज भोलेनाथ के एक और दिव्य धाम की यात्रा करते है,जिसे अर्ध काशी भी कहा जाता है।वह पावन स्थान है राजस्थान के अर्बुदाचल पर्वत पर, अर्बुदाचल अर्थात् माउंट आबू।यहां विराजमान है अचलेश्वर महादेव के रूप में।
माउंट आबू से 11 किलोमीटर दूर अचलगढ़ में विराजित भोलेनाथ की यहां की गाथा ही निराली है।
सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता श्री विजय गोठवाल बताते है कि यहां भोले बाबा के अंगूठे की पूजा की जाती है।
मान्यता है कि यह पर्वत भगवान भूतभावन शिव के अंगूठे पर टिका है,अगर यहां से अंगूठा विलुप्त हुआ तो यह पर्वत भी समाप्त हो जायेगा।
अंगूठे के नीचे शिवलिंग है और एक प्राकृतिक कुंड है जिसमे जितना भी जल अर्पित करो वो भरता नहीं है और कहां जाता है यह भी अभी तक पता नहीं है।इसी अंगूठे के नीचे ही है अचलेश्वर महादेव जी का विग्रह। यह शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है। यह सुबह के समय लाल, दोपहर को केसरिया और रात होते-होते श्याम रंग का हो जाता है।
अचलेश्वर महादेव मंदिर परिसर के चौक में चंपा का विशाल पेड़ है तो मंदिर की एक और दो कलात्मक खंभों पर धर्म कांटा बना हुआ है। इसकी शिल्प कला अद्भुत है।
कहते हैं कि इस क्षेत्र के राजा जब राज सिंहासन पर बैठते थे उससे पहले अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त कर धर्म कांटे के नीचे प्रजा के साथ न्याय की शपथ लेते थे ।
मंदिर परिसर में ही द्वारिकाधीश का मंदिर भी बना हुआ है । वहीं गर्भ गृह के बाहर वराह, वामन, कश्यप, मत्स्य,कृष्ण,राम, परशुराम,बुद्ध और कल्कि अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां विराजमान है।
मंदिर के पास ही अचलगढ़ की पहाड़ियों पर एक किला बना हुआ है,जिसे अचलगढ़ का किला कहते हैं ।
अब तो यह खंडहर में तब्दील हो गया है पर मान्यता है कि इसका निर्माण परमार राजवंश द्वारा करवाया गया था । उसके बाद महाराणा कुंभा है 1452 में इसका पुनर्निर्माण करवाया था और अचलगढ नाम दिया था।
कल्याणकारी शिव आपका कल्याण करें,सदा स्वस्थ और प्रसन्न रहें।
फिर मिलते है, एक नए धाम की मानस यात्रा में,अगली बार....तब तक के लिए जय शंकर की।
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