राजस्थान में है बारह वां ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर
सावन के पावन महीने में एक बार फिर चलते है एक और बाबा भोलेनाथ के दिव्य धाम की मानस यात्रा पर।
इस बार की मानस यात्रा है एक ज्योतिर्लिंग की। हर शिव भक्त जानता है ज्योतिर्लिंग के बारे में,क्योंकि वो भगवान शिव की स्तुति भी करता है। इस मंत्र से -
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्॥
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकियां भीमशंकरम्।
वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे॥
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतूबन्धे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये॥
द्वादशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥
यं यं काममपेक्ष्यैव पठिष्यन्ति नरोत्तमाः।
तस्य तस्य फलप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः॥
इसमें द्वादश ज्योतिर्लिंग का वर्णन है, जबकि हम हर गली / कॉलोनी में शिवालय देख सकते है अपने भारत में।
शिवलिंग भक्तों द्वारा स्थापित किए जाते है और ज्योतिर्लिंग स्वयं भगवान शिव के ज्योतिर्मय स्वरूप में प्राकृतिक रूप से वहां प्रकट होकर स्थापित होने का स्वयं द्वारा दिया गया वचन है।
ऊपर वाली भोलेनाथ के द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्तुति में फलश्रुति से पहले वाली आखरी लाइन है - सेतूबन्धे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये
अर्थात सेतुबंध जहां भगवान श्रीराम ने किया वहां रामेश्वरम के रूप में और शिवाला में घुश्मेश्वर के रूप में विराजमान है।
हम आज यात्रा करने वाले है घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के जो कि राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के शिवाड़ (जो कि शिवाला का बिगड़ा हुआ नाम है) में स्थित है।
सवाई माधोपुर जिले में है,जयपुर से 104 किलोमीटर और इशरदा रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित है भगवान आशुतोष का यह दिव्य धाम,जिनके दर्शन मात्र से भक्त के संताप दूर हो जाते है।
कथा भोलेनाथ के घुश्मेश्वर बन जाने की
शिव महापुराण कोटि रूद्र संहिता के अध्याय 32-33 के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग शिवालय में स्थित है। प्राचीन काल में शिवाड़ का नाम ही शिवालय था। शिवाड़ स्थित घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग अधिकांश समय जलमग्न रहने के कारण अदृश्य ही रहता है। शिवरात्रि पर यहां लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है तथा प्राणी सब पापों से मुक्त होकर सांसारिक सुखों को भोग कर मोक्ष को पाता है।
ऐसे प्रकट हुए घुश्मेश्वर महादेव
श्वेत धवल पाषाण देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नामक धर्मपरायण भारद्धाज गोत्रीय ब्राह्मण रहते थे,उनके सुदेहा नामक पत्नी थी। संतान सुख से वंचित रहने एवं पड़ोसियों के व्यंग बाण सुनने से व्यथित होकर पति का वंश चलाने हेतु सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा का विवाह सुधर्मा के साथ करवाया। घुश्मा,भगवान शंकर की अनन्य भक्त थी वह प्रतिदिन एक सौ एक पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजन-अर्चना करती थी एवं उनका विसर्जन समीप के सरोवर में कर देती थी। आशुतोष की कृपा से घुश्मा ने एक पुत्र रत्न को जन्म दिया तो सुदेहा के हर्ष की सीमा नहीं रही,परंतु बहन घुश्मा के पुत्र के बड़े होने के साथ साथ उसे लगा कि सुधर्मा का उसके प्रति आकर्षण एवं प्रेम कम होता जा रहा है। पुत्र के विवाह के उपरांत ईर्ष्या के कारण उसने घुश्मा के पुत्र की हत्या कर दी एवं शव को तालाब मे फेंक दिया।
प्रात:काल जब घुश्मा की पुत्रवधू ने अपने पति (घुश्मा के पुत्र)की शय्या को रक्त रंजित पाया तो विलाप करती हुई अपनी दोनों सासों को सूचना दी। विमाता सुदेहा जोर जोर से चीत्कार कर रोने लगी जबकि घुश्मा जो शिव पूजा में लीन थी,निर्विकार भाव से अपने आराध्य को श्रृद्धा सुमन समर्पण करती रही। सुदेहा,सुधर्मा व पुत्रवधू की मार्मिक चीत्कारे,विलाप एवं पुत्र की रक्त रंजित शैय्या भी घुश्मा के भक्तिरत मन में विकार उत्पन नहीं कर सकी। घुश्मा ने सदैव की भांति पार्थिव शिवलिंगों का विसर्जन सरोवर में कर आशुतोष (भगवान शंकर)की स्तुति की तो उसे पीछे से मां-मां की आवाज सुनाई दी जो उसके प्रिय पुत्र की थी। जिसे मृत मानकर पूरा परिवार शोक कर रहा था। विस्मित घुश्मा ने उसे शिव इच्छा-शिव लीला मानकर भोले शंकर का स्मरण किया तब आकाशवाणी हुई की हे घुश्मा तेरी सौत सुदेहा दुष्टा है उसने तेरे पुत्र को मारा है। मैं उसका अभी विनाश करता हूं। परन्तु घुश्मा ने स्तुति की “प्रभु मेरी बहन को मत मारो, उसकी बुद्धि निर्मल कर दो। क्योंकि आपके दर्शन मात्र से पातक नहीं ठहरता, इस समय आपका दर्शन करके उसके पाप भस्म हो जाएं”। भक्त वत्सल भगवान सदाशिव घुश्मा की भक्ति और मन की पवित्रता को देखकर उसे आशीर्वाद दिया और स्वयं भी उसी के नाम से वहीं ज्योति के रूप में रहने का वरदान दिया,तभी से यहां प्रकट है घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग।
बरसों पहले मंदिर के सामने वाले सरोवर की खुदाई में भी असंख्य शिवलिंग मिले जो घुश्मा के पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने की कथा की पुष्टि करते है।
बलिदानों की गवाही,अक्रांताओं के निशान करते है प्राचीनता की पुष्टि।
शिव मंदिर कितना पुराना है इसका ब्योरा यों तो उपलब्ध नहीं लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक यहां महमूद गजनवी ने भी आक्रमण किया था।
गजनवी से आक्रमण करते हुए युद्ध में बलिदान हुए स्थानीय शासक चन्द्रसेन गौड व उसके पुत्र इन्द्रसेन गौड के यहां स्मारक मौजूद है। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण का भी उल्लेख है।
वहीं अलाउद्दीन खिलजी द्वारा मंदिर के पास ही बनाई गई मस्जिद इस स्थान की प्राचीनता की पुष्टि करती है।
सत्य सनातन नित नूतन, चिर पुरातन ऐसी ही नहीं कहा गया क्योंकि धर्म का अर्थ बंध जाना नहीं होता,किसी किताब में,किसी सांचे में,किसी पहनावे में,किसी खाने में। धर्म बंधन से मुक्त करता है, धारण करने योग्य संस्कार देता है जो अंततोगत्वा मोक्ष की ओर ले जाता है।
यही कारण है कि हमारे पुरुषार्थ धर्म से प्रारंभ होकर मोक्ष पर पूर्ण होते है। धर्म का अनुसरण कर अर्थ का अर्जन करते हुए काम की संतुष्टि और उसी पथ से मोक्ष की प्राप्ति।
आइए,सावन के इस पावन महीने में भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करें, धर्म - संस्कृति और राष्ट्र की रक्षा करने वाले हुतात्माओं का पुण्य स्मरण करें और याद रखें आक्रांताओ के द्वारा किए गए शोषण,रक्तपात और आस्था के पवित्र स्थलों के ध्वस्तीकरण को,यह सब अपनी भावी पीढ़ी को भी जरूर बताएं,ताकि उन्हें याद रहे शिवाला ना कि वामपंथियों के द्वारा थोपा गया बुद्धि का निकाला गया दिवाला।
।।शिव।।
*भोले की फौज,करेगी मौज*
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आभार आप सभी का