2024 के जनादेश के मायने ...

 लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम

विकसित भारत के लिए जनादेश

लोकतंत्र की जननी भारत भूमि में लोकसभा चुनाव के रूप में पिछले ढाई महीनों से चल रहे गण पर्व का समापन लोकसभा चुनाव के परिणाम के साथ ही मंगलवार को हो गया।

विश्व के सबसे बड़े चुनाव का उत्सव जिसमें 100 करोड़ से ज्यादा मतदाता, 11 लाख से ज्यादा पोलिंग स्टेशन और लगभग डेढ़ करोड़ मतदान कर्मियों और 55 लाख मशीनों के माध्यम से देश की नई सरकार चुनने का काम हुआ है।

भारत के चुनाव परिणाम पर एक विशेषज्ञ की टिप्पणी बहुत ही महत्वपूर्ण है उन्होंने कहा है कि 

"भारत के लोगों ने एनडीए को ऐसी जीत दी है जिसे कुछ लोग इसे हार की तरह महसूस करते हैं और इंडी गठबंधन को ऐसी हार दी है जिसे कुछ लोग जीत की तरह महसूस करते हैं।"

चुनाव परिणाम देखकर कहा जा सकता है कि इसमें कोई शक नहीं कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार जीत मिली है और यह कई मायनों में ऐतिहासिक है।कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की अति उत्साह जनक टिप्पणियों के बावजूद भी कोई भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी और राजग की जीत के महत्व को कम नहीं कर सकता।एनडीए की इस जीत का पूरा श्रेय बिना किसी लाख लपेट के प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी को जाता है।

यह बात हर किसी को याद रखनी चाहिए कि भाजपा द्वारा जीती गई सीटें इंडी गठबंधन के कुल योग से ज्यादा है।

चुनाव परिणाम के मायने

यह जीत भारतीय जनता पार्टी के मूल विचार राष्ट्र प्रथम के आधार पर मोदी द्वारा गढ़े गए विकसित भारत के एजेंडे की जीत है,तो यह चुनाव  राष्ट्रीय राजनीति में गठबंधन युग की पुनर्वापसी भी है, यह चुनाव परिणाम कुछ राज्यों में वोट बैंक की राजनीति के खतरे के प्रति भी आगाह करता है।

विकसित भारत के एजेंडे पर मोहर 

चुनाव परिणाम की तालिका देखते हैं तो कांग्रेस ने भले ही पिछले चुनाव के मुकाबले अपनी सीटें दोगुनी कर दी है परन्तु भारतीय जनता पार्टी का दबदबा दक्षिण के राज्यों कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश से लेकर उत्तर में हिमाचल प्रदेश,उत्तराखंड तक जारी है,इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश और उड़ीसा में भाजपा की ऐतिहासिक सफलता भी जोड़ी जानी चाहिए।

देश के उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम सभी जगह भारतीय जनता पार्टी के विकसित भारत के एजेंडे को इन चुनाव में सर्वानुमति से स्वीकृति दी गई है ऐसा परिणाम से इंगित होता है भले ही उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र,हरियाणा, राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में जातिवाद ने विकास पर हावी होने में सफलता पाई है।

जातिवाद की इस सफलता ने निश्चित ही विकसित भारत के स्वप्न संकल्प को गहरा नुकसान पहुंचाने की कोशिश हुई है।

फूट डालो,राज करो कि अंग्रेजों की नीति को गुरूत्तर दायित्व के रूप में कांग्रेस ने आत्मसात किया और यह इसकी पुरानी रणनीति का हिस्सा है।

कुछ लोग चुनाव परिणाम पर भारतीय जनता पार्टी द्वारा मंगलसूत्र और संबंधित मुद्दे उठाने को लेकर भाजपा पर हमलावर है पर वह भूल जाते हैं कि भाजपा के पास मजहब आधारित आरक्षण के कांग्रेस और उसके सहयोगियों के विचार पर हमला करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था जो कांग्रेस के घोषणा पत्र का और उसके विचारों  का महत्वपूर्ण हिस्सा था।

इन चुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने जहां संविधान बदल कर एससी एसटी ओबीसी वर्ग के आरक्षण को खत्म करने जैसे तथ्य हीन आरोप लगाकर नकारात्मक राजनीति की वहीं भारतीय जनता पार्टी ही एकमात्र ऐसी पार्टी थी जिसने अपने प्रदर्शन के आधार पर वोट मांगने का साहस किया।

जहां सभी राजनीतिक दल प्रदर्शन शब्द से ही परहेज करना चाहते थे वहीं भारतीय जनता पार्टी ने अपने प्रदर्शन को आधार बनाकर लोकसभा चुनाव में जनता के सामने अपने आप को रखा।

भाजपा को सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में जनता ने चुनकर और देश के सभी हिस्सों में इसको प्रतिनिधित्व देकर विकसित भारत के एजेंडे पर जनता ने मोहर लगाई है।

गठबंधन की राजनीति की पुनर्वापसी

गठबंधन की राजनीति का दंश भारत ने अनेक बार भोगा है,क्षेत्रीय क्षत्रपों की अपनी क्षेत्रीय राजनीति, राष्ट्रीय दृष्टिकोण के अभाव,और क्षेत्रीय दलों का मै और मेरे अपनों के विकास का भाव अनेक समस्याओं का कारण बनता रहा है।

गठबंधन की राजनीति के कारण अस्थिरता से बचाना है तो राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को एक संगठित पार्टी संगठन के लिए गंभीरता से प्रयास करने होंगे और भारतीय जनता पार्टी को अपने संगठन को फिर से जीवंत बनाना होगा जिसमें किन्हीं कारणों से कुछ शिथिलता आ गई।

भारतीय जनता पार्टी को जहां अपने संगठन को दुरुस्त करना है वहीं कांग्रेस को भी यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाए उतना ही उसके संघटनात्मक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है कि उसके सहयोगियों का साथ उसकी मजबूरी हो सकता है कांग्रेस का साथ उनकी मजबूरी नहीं है।

ममता बनर्जी अपने नेतृत्व के अलावा किसी दूसरे का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है तो दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल जैसे लोग हैं जिनकी विश्वसनीयता ना जनता में रही है और ना राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में कहीं स्थिर रह पाएंगे।

इंडी गठबंधन को यह भी स्वीकार करना है कि भ्रष्टाचार के मामले में जेल गए अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन के प्रति जनता में कोई भावनात्मक लगाव नहीं है इसलिए ऐसे लोगों के प्रति कांग्रेस का समर्पण उसे फिर से 2019 की स्थिति में ले जाने के लिए तैयार रहेगा।

वोट बैंक के विनाशकारी खतरे की ओर आगाह करता जनादेश

यह चुनाव देशवासियों को वोट बैंक की राजनीति के विनाशकारी खतरे के प्रति आगाह करता है।

मजहब आधारित आरक्षण की कांग्रेस की सोच के खिलाफ जनता ने मतदान किया है जो यह चाहती थी कि अल्पसंख्यकवाद के नाम पर बहुसंख्यक समाज को दोयम दर्जे की ओर धकेल दिया जाए।

मजहब आधारित कानून की छूट और सरकारी ठेकों में योग्यता और तकनीकी कौशल पर मजहबी वर्गों को प्राथमिकता का विचार जनता ने सिरे से खारिज कर दिया है।

परंतु वोट बैंक के लिए ऐसी विनाशक सोच राष्ट्रीय राजनैतिक दल में है और उसे उन वर्गों का इस आधार पर समर्थन भी मिलता है इसके प्रति भी यह चुनाव जनता को आगाह करते है।

अंतत: यह जनादेश स्पष्ट करता है कि भारत की जनता भारत के विकास के एजेंडे का समर्थन करती है। यही कारण है कि काम के आधार पर केरल में भी भारतीय जनता पार्टी अपनी शुरुआत करती है, अरुणाचल प्रदेश जैसे पूर्वोत्तर के राज्य में लगातार दूसरी बार सरकार बनाती है तो सुदूर उड़ीसा में 24 साल के बीजद के शासन का खात्मा करते हुए भाजपा को बागडोर सौंपती है, अर्थात भारतीय जनता पार्टी में अपना भरोसा जताती है परंतु इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी को इसके लिए सावचेत भी करती है कि वह अपने संगठन को दुरुस्त करें और अपनी संगठनात्मक योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए पर्याप्त निगरानी तंत्र को मजबूत करें,साथ ही नए लोगों को जोड़ने की जल्दबाजी में स्थाई और विचार के प्रति समर्पित लोगों की अनदेखी न करें।

यह जनादेश यह भी स्पष्ट करता है कि देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत को आगे बढ़ते हुए देखना चाहता है उनकी आर्थिक नीतियों और विदेश नीतियों पर जनता की सहज स्वीकृति प्राप्त हुई है।

यह जनादेश कांग्रेस के लिए भी एक संदेश है कि वोट बैंक की राजनीति के लिए कुछ भी कर लेने का उसका विचार भारत की जनता स्वीकार नहीं करती है भले ही उसे तात्कालिक रूप से आज लाभ दिखाई दे परंतु जनता 1947 के जख्म को भूली नहीं है, जिसके मूल में कांग्रेस नेताओं की सत्ता की भूख थी।

।।शिव ।।

Comments

बढ़िया विश्लेषण किया है। जनादेश के साथ आत्म मंथन के लिए ये चुनाव परिणाम प्रेरित कर रहें हैं
Manoj said…
बेहतरीन विश्लेषण..

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