भारत को इंडिया कहने की विवशता क्यों ?
हाल ही के दिनों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय हौसबोले ने कहा कि "भारत का अंग्रेजी नाम इंडिया नहीं बल्कि 'भारत' कहा जाना चाहिए। यह कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया' है, 'रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया' है... ऐसा क्यों है? ऐसा सवाल उठना चाहिए। इसे सुधारा जाना चाहिए। अगर देश का नाम भारत है, तो इसे इसी नाम से पुकारा जाना चाहिए। हौसबोले ने कहा कि भारत एक भौगोलिक इकाई या संवैधानिक ढांचे से कहीं अधिक है; यह एक गहन दर्शन और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है"।
उनका कथन और सुझाव समाज और राष्ट्रीय नेतृत्व के समक्ष मार्गदर्शन की तरह है।
आखिर हम अंग्रेजों के दिए नाम को ढोने के लिए विवश क्यों हैं? हमारे ऋषि-पूर्वजों ने इस राष्ट्र को एक सांस्कृतिक नाम 'भारत' दिया था, हमारा कर्तव्य है कि हम इसी नाम के साथ स्वयं को जोड़ें। यह कितना बेतुका है कि हम अपने देश का नाम हिन्दी में 'भारत' लिखते हैं और अंग्रेजी में 'इंडिया'। क्या किसी और देश के नाम के साथ हमने ऐसा देखा है? उत्तर है- नहीं। क्योंकि किसी भी भाषा में नाम का अनुवाद नहीं किया जाता है। नाम मौलिक होता है और उसे उसी तरह उच्चारित किया जाता है। लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी औपनिवेशिक मानसिकता के दास हमारे नेतृत्व ने अंग्रेजी के साथ-साथ अंग्रेजियत को भी गौरव की अनुभूति के साथ स्वीकार किया। जबकि संविधान सभा में आई बहस में कई नेताओं ने भी पुरजोर तरीके से देश का नाम भारत करने पर जोर दिया था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सेठ गोविंद दास ने जोर देकर कहा था पुराणों और चीनी यात्री ह्वेन-सांग के लेखों में 'भारत' देश का मूल नाम था। इसलिए स्वतंत्रता के बाद संविधान में 'इंडिया' को प्राथमिक नाम के रूप में नहीं रखा जाना चाहिए। वास्तव में भारत हमारी संस्कृति एवं परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है लेकिन इंडिया शब्द के साथ ऐसी कोई गौरव की अनुभूति कराने वाली बात नहीं जुड़ी है। भारत कहने पर, हमें समृद्धशाली परंपरा का स्मरण होता है। स्वाभाविक ही हम लोग अपनी परंपरा से जुड़ जाते हैं। जब भी किसी ने अपने देश को भावनात्मक आधार पर स्मरण किया है, उसने उसके लिए भारत शब्द ही उपयोग किया है। राष्ट्रगान का ही उदाहरण लीजिए इसमें 'इंडिया भाग्य विधाता' नहीं आता, अपितु 'भारत भाग्य विधाता' गाया जाता है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दुनियाभर में अनेक उदाहरण हैं, जब देशों ने बाह्य पहचान को हटाकर अपने 'स्व' का धारण किया और अपना वास्तविक नाम स्वीकार किया है। इनमें हमारे ही पड़ोसी देश म्यांमार और श्रीलंका उदाहरण हैं। वर्तमान समय में केंद्र में मोदी सरकार है, जो भारत बोध से भरी हुई है। उसने पूर्व में भी राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी पत्र पर हिन्दी अंग्रेजी में 'भारत' लिखवाकर एक पहल की थी। उम्मीद तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संसद में इस संबंध में कोई प्रस्ताव लेकर आएं। इस दिशा में कोई प्रस्ताव नहीं भी आता है तब भी एक संकल्प सबको लेना चाहिए कि जहाँ तक संभव होगा, हम अपने देश का नाम भारत ही लिखें और बोलें। आम समाज, प्रबुद्ध वर्ग और प्रभावशाली नेतृत्व जब यह करने लगेगा, तब स्वतः ही 'भारत' नाम चलन में आ जाएगा। वैसे भी अभी सामान्य तौर पर हम अपने देश के लिए 'भारत' नाम का ही उपयोग करते हैं।
क्या भारत को भारत ही कहने की शुरुआत आज से ही हम कर सकते है? नहीं तो विवशता क्या है? ऐसी ही विवशता क्या ' चन्द्र प्रकाश ' को ' मून लाइट ' कहने की इजाजत देती है? नहीं तो फिर भारत को भारत ही रहने दीजिए और दिल से कहने दीजिए।
।।शिव।।
Comments