क्या हनुमान जी ने किया था कभी अष्ट सिद्धियों का प्रयोग ?
कल हमने चर्चा की थी, कि माता जानकी ने हनुमान जी को अष्ट सिद्धि और नव निधि का दाता होने का आशीर्वाद दिया।
हनुमान जी को अष्ट सिद्धियां प्राप्त हैं लेकिन क्या इनका उपयोग उन्होंने कभी किया था?
कौन सी हैं अष्ट सिद्धियां?
ये तो हम सभी जानते हैं कि हनुमान जी को अष्ट सिद्धियां मिली हुई हैं। ये सिद्धियां ऐसी हैं जिनके उपयोग से कुछ भी किया जा सकता है। पहले जानते हैं कि ये आठ सिद्धियां कौन-कौन सी हैं। अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व।
अष्ट सिद्धि के बारे में कल भी हमने पढ़ा और आज फिर एक बार उनका स्मरण किया है, अब हम जानते हैं कि बाबा हनुमंत लाल जी ने इन सिद्धियों का कब-कब प्रयोग किया।
अणिमा सिद्धि - इसका मतलब है कि अणु से भी छोटा यानि ये सिद्धि शरीर को अणु से भी छोटा कर देती है। हनुमान जी को जब विशाल समुद्र को पार कर लंका जाना था, माता सीता के बारे में पता करने तब समुद्र के बीच में उन्हें एक विशाल राक्षसी सुरसा ने रोक लिया था। इस वक्त हनुमान जी ने खुद को छोटा कर सुरसा के मुंह प्रवेश किया और वापस निकल आए।
जस-जस सुरसा बदनु बढ़ावा।
तासु दून कपि रूप देखावा ॥
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा।
अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा।।
महिमा सिद्धि- जिस प्रकार अणिमा सिद्धि छोटा कर देती है उसी प्रकार महिमा सिद्धि इसका ठीक उलट बड़ा कर देती है। हनुमान जी ने इस शक्ति का प्रयोग सुरसा के सामने किया था और इसके बाद अशोक वाटिका में हनुमान जी ने इस सिद्धि के प्रयोग से खुद को आकाश जितना बड़ा कर लिया था।
जस-जस सुरसा बदनु बढ़ावा।
तासु दून कपि रूप देखावा ॥
गरिमा सिद्धि - का उपयोग अत्यधिक भारी हो जाने के लिए करते हैं। हनुमान जी ने इसका उपयोग त्रेतायुग में कभी नहीं किया। इस सिद्धि का उपयोग द्वापरयुग में हनुमान जी ने किया जब उन्होंने भीम का घमंड तोड़ने के लिए एक वृद्ध वानर का रूप धारण किया और अपनी पूंछ को इस सिद्धि के सहारे अत्यधिक भारी कर लिया। भीम जब वहां से गुज़रे तो उन्होंने हनुमान जी की पूंछ फैली हुई देखी और उनसे इसे हटाने के लिए कहा। तब हनुमान जी ने भीम से कहा कि मैं तो वृद्ध हूं तुम खुद हटा दो। इसके बाद भीम ने बहुत कोशिश की हनुमान जी की पूंछ को एक इंच भी हिला नहीं पाए। बाद में भीम को एहसास हो गया कि ये कोई साधारण वानर नहीं हैं बल्कि कोई दिव्य पुरुष हैं। साथ ही भीम को अपने अंदर जन्मे अहंकार का भी एहसास हो गया।
लघिमा सिद्धि - भार रहित बना देती है। हनुमान जी ने इस सिद्धि का उपयोग अशोक वाटिका में किया था हालांकि उन्होंने अणिमा सिद्धि की मदद भी ली थी लेकिन खुद के आकार को छोटा करके लघिमा की मदद से उन्होंने खुद को भार रहित कर लिया और इस प्रकार माता सीता जिस वृक्ष के नीचे बैठी थीं उसके एक छोटे से पत्ते पर बैठकर उन्होंने माता सीता से संवाद किया था।
मसक समान रूप कपि धरी।
लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी।।
प्राप्ति सिद्धि - जैसा की नाम से ही पता लग रहा है कि इस सिद्धि के उपयोग के कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है। पशु पक्षियों से संपर्क भी किया जा सकता है। इतना ही नहीं भविष्य भी देखा जा सकता है। हालांकि हनुमान जी ने भविष्य देखने या किसी चीज़ को प्राप्त करने के लिए इस सिद्धि का कभी उपयोग नहीं किया लेकिन माता सीता को लंका में खोजने के लिए उन्होंने कई पशु पक्षियों से इस सिद्धि की मदद से बातचीत जरूर की थी।
प्राकाम्य सिद्धि - इस सिद्धि से अपनी हर इच्छा को पूरा किया जा सकता है। आकाश की ऊंचाईयों और पाताल की गहराईयों तक पहुंचा जा सकता है। इस सिद्धि का प्रयोग हनुमान जी ने वेश बदलने के लिए कई बार किया।
ईशीत्व सिद्धि - ईशीत्व का मतलब है ईश्वर स्वरूप हो जाना। हनुमान जी खुद भगवान शिव के अवतार हैं तो ईश्वर स्वरूप तो वो खुद हैं लेकिन हनुमान जी के रूप में अवतार लेने के बाद उन्होंने प्रभु श्री राम को अपना जीवन समर्पित कर दिया और इसी समर्पण ने उन्हें ईश्वरीय गुणों से भर दिया। इस सिद्धि के सहारे ही हनुमान जी इतनी बड़ी वानर सेना को एकजुट रख पाए।
वशीत्व सिद्धि - वशीत्व का मतलब है सभी को वश में कर लेना। इसी सिद्धि के कारण हनुमान जी ने अपनी सभी इंद्रियों को वश में कर रखा है। वे खुद के मन पर भी नियंत्रण रखते हैं।
जय श्री राम
।।शिव।।
नवरात्र विचार
चैत्र नवरात्र 2082
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