अब भारत नहीं बनेगा घुसपैठियों की धर्मशाला
भारत में वर्षों से विदेशी घुसपैठियों को रोकने के लिए प्रभावी कानून बनाने की मांग की जाती रही है, बढ़ती घुसपैठ के कारण कईं प्रदेशों में जनसंख्या असंतुलन स्पष्ट दिखने लगा, अवैध घुसपैठियों ने अपने वोट बैंक के कारण अब विधायिका में भी अपनी दखल बढ़ानी शुरू कर दी है,यही कारण है कि अवैध घुसपैठ के खिलाफ प्रभावी कानून बनाने के लिए जनता का दबाव भी बनने लगा था।
इसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में बीते बजट सत्र में इमिग्रेशन एंड फॉरेनर्स बिल 2025 रखा और कांग्रेस,तृणमूल कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद इसे बहुमत से पारित करवाकर राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेज दिया।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 4 अप्रैल को इसे कानून बनाने की स्वीकृति दे दी, यह कानून आजादी से पहले बने तीन और एक पुराने कानून को समाप्त कर नए कानून के रूप में आया है।
आजादी से पहले के फॉरेनर्स एक्ट 1946,
पासपोर्ट एक्ट 1920,
रजिस्ट्रेशन ऑफ फॉरेनर्स एक्ट 1939,
और इमिग्रेशन (करियर लाइबिलिटी) एक्ट 2000 के स्थान पर इमिग्रेशन एंड फॉरेनर्स एक्ट 2025 के रूप में आया है।
नए कानून की मुख्य विशेषताएं:
कठोर दंडात्मक प्रावधान:
बिना वैध दस्तावेजों के प्रवेश पर 7 साल तक की सजा और 10 लाख रुपये तक जुर्माना ।
फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल करने पर 2 से 7 साल की सजा और 1 से 10 लाख रुपये जुर्माना ।
प्रतिबंधित क्षेत्रों में अनधिकृत प्रवेश पर 3 साल की सजा और 3 लाख रुपये जुर्माना ।
घुसपैठ में सहायता करने वाले वाहनों/ट्रांसपोर्ट साधनों को जब्त करने और मालिकों पर 5 लाख रुपये तक जुर्माना ।
राष्ट्रीय सुरक्षा पर फोकस:
विदेशी व्यक्तियों को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी, न कि सरकार को।
केंद्र सरकार को विदेशियों के प्रवेश, पंजीकरण, और निगरानी के लिए व्यापक अधिकार ।
राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में तत्काल हिरासत और कड़ी कार्रवाई।
डेटा संग्रह और नियमन:
भारत में प्रवेश करने वाले सभी विदेशियों का डेटा एकत्र किया जाएगा।
वैध पासपोर्ट, वीजा, और यात्रा दस्तावेजों की अनिवार्यता।
संपत्ति और क्षेत्रों पर नियंत्रण:
विदेशियों के आवागमन वाले स्थानों को नियंत्रित करने का अधिकार केंद्र सरकार को।
मालिकों को परिसर बंद करने या शर्तों के साथ उपयोग की अनुमति देने का प्रावधान।
क्यों बनाया गया कानून?
अवैध घुसपैठ बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की बढ़ती तादाद के कारण पश्चिम बंगाल असम सहित देश के अनेक राज्यों में जनसंख्या संतुलन गड़बड़ाने लगा था और राष्ट्रीय सुरक्षा के व्यापक संदर्भों में जरूरी हो गया था।
सामाजिक आर्थिक प्रभाव
घुसपैठियों की बढ़ती तादाद के कारण न केवल जनसंख्या असंतुलन बढ़ रहा था बल्कि छोटे बड़े अपराधों में उनकी संलिप्तता के साथ ही लव जिहाद ,लैंड जिहाद जैसे मामले भी सामने आने लगे है।
पुराने कानूनों का काल बाह्य हो जाना
इस संबंध में बने हुए कर कानून में से तीन कानून आजादी के पूर्व के हैं। कानून की खामियों का फायदा घुसपैठियों को मिल जाता था।
राज्य सरकारों की निष्क्रियता और वोट बैंक
संसद में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा की पश्चिम बंगाल, झारखंड, कर्नाटक जैसे कई राज्य हैं जो इस मामले में निष्क्रिय हैं और घुसपैठियों को राजनीतिक आधार पर संरक्षण मिल जाता है।
भारत धर्मशाला नहीं
गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में स्पष्ट किया कि यह बिल भारत को "धर्मशाला" बनने से रोकने के लिए है। पर्यटन, शिक्षा, और व्यापार के लिए आने वालों का स्वागत है लेकिन गलत इरादों वाले लोगों पर सख्ती बरती जाएगी । बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर टीएमसी पर निशाना साधते हुए शाह ने कहा कि पश्चिम बंगाल में अवैध दस्तावेज बनाने में उसके स्थानीय कार्यकर्ता शामिल हैं।
कैसे बना नया कानून ?
चार पुराने कानूनों को खत्म करके यह नया बिल बनाया गया है। अंग्रेजों के समय के तीन औपनिवेशिक कानून और इमिग्रेशन (करियर लाइबलिटी) कानून को साल-2000 में बनाया गया था। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने जिस तरह अवैध घुसपैठियों के खिलाफ कारवाई शुरु की है। भारत में रोहिंग्या और विदेशी घुसपैठ के संकट से निपटने के लिए पिछले कई वर्षों से बहस और कानूनी प्रक्रिया चल रही है,पर कानून के अभाव और घुसपैठियों में वोट बैंक देखने वाले दलों के कारण इन पर कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं हो सकती।
भारत में विदेशियों की पहचान के लिए क्या है जनसंख्या रजिस्टर का प्रावधान ?
अवैध घुसपैठियों को रोकने के लिए नागरिकों की पहचान और रजिस्ट्रेशन सबसे जरूरी है। संविधान की सातवीं अनुसूची में केन्द्रीय सूची में इंट्री-17 के अनुसार नागरिकता का विषय केन्द्र सरकार के अधीन आता है।
आजादी के बाद 1951 में पहली बार जनगणना होने के बाद, नियमों के अनुसार जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) बनना चाहिए था। नागरिकता के लिए संसद ने 1955 में कानून बनाया लेकिन उसके अमल के लिए पहली बार 2003 में नियमों के अनुसार नागरिकों के रजिस्टर (एनआरसी) का नियम बनाया गया।
उसके बाद साल-2010 में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर बनाने की प्रक्रिया के साथ आधार कार्ड का सिस्टम लागू हुआ। लेकिन उसमें पता और नागरिकता का वेरिफिकेशन नहीं होने की वजह से मामला उलझ गया।
नागरिकता अधिनियम में बदलाव और सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
साल-2019 में नागरिकता अधिनियम में धारा-6-बी के माध्यम से सीएए का प्रावधान किया गया। उसके अनुसार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के से आने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए नागरिकता का प्रावधान किया गया। असम समझौते को लागू करने के लिए नागरिकता कानून में धारा-6-ए जोड़ी गई थी। इसके अनुसार पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश से आये लोगों के लिए नागरिकता का प्रावधान था। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अक्टूबर-2024 के फैसले से उस कानून को वैध करार दिया है।
नए कानून से क्या बदलेगा?
विदेशी घुसपैठ से बढ़ रहे संकट से निपटने के लिए नये कानून में अनेक महत्वपूर्ण प्रावधान हैं। सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि अब सरकार की बजाए विदेशी व्यक्ति को यह साबित करना पड़ेगा कि वह भारत का नागरिक है।
राष्ट्रीय सुरक्षा के इस मामले में सख्ती से निपटने के लिए केन्द्र सरकार और आव्रजन अधिकारियों को और अधिकारों से लैस किया गया है।
वैध वीजा के बगैर भारत में प्रवेश करने वालों को 5 साल की सजा और 5 लाख तक का जुर्माना होगा।
दस्तावेजों में हेरा-फेरी कर भारत में प्रवेश करने वाले विदेशियों को 2 से 7 साल तक की सजा और 1 से 10 लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
प्रतिबंधित क्षेत्रों में विदेशियों के प्रवेश करने पर उन्हें 3 साल तक सजा और 3 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
अवैध घुसपैठियों को भारत लाने वाले वाहनों या ट्रांसपोर्ट साधनों को जब्त करने के साथ मालिकों पर 5 लाख तक का जुर्माना हो सकता है।
इस कानून को लागू होने में क्या अड़चनें आ सकती हैं?
संसद में बहस के बाद दोनों सदनों में पारित होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून सरकार की नोटिफिकेशन के अनुसार लागू होगा। देशहित से जुड़े इस कानून को बनाने के लिए केन्द्र सरकार और संसद के पास सम्पूर्ण संवैधानिक अधिकार हैं। लेकिन सीएए और एनआरसी की तर्ज पर नये कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिल सकती है।
नागरिकता का विषय केन्द्र सरकार के अधीन हैं। लेकिन पुलिस और कानून व्यवस्था का विषय राज्यों के अधीन है। अवैध घुसपैठियों को राज्य सरकारों से राशन कार्ड और पहचान-पत्र मिल जाते हैं। ऐसे लोगों को आधार कार्ड मिलने और उनका नाम वोटर कार्ड में शामिल होने से केन्द्रीय सरकार की विफलता भी उजागर होती है।
अधिकांश विदेशी घुसपैठिए गरीब और बेघर होते हैं, जिनके पास जुर्माने के लिए पैसा नहीं होता। भारत के डिटेंशन सेंटर्स में घुसपैठियों को लंबे समय तक रखना खर्चीला काम है। घुसपैठियों को भारत से बाहर भेजने में सरकार को अभी तक बड़े पैमाने पर सफलता नहीं मिली है। इसलिए कानून में बदलाव के साथ राज्य सरकारों के सहयोग और अदालतों में मामलों के जल्द निपटारे से ही घुसपैठियों के मर्ज से भारत को राहत मिलेगी।
कुल मिलाकर कह सकते है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐतिहासिक निर्णय की कड़ी में यह भी एक ऐतिहासिक कदम है जो भारत को 2047 तक विकसित भारत बनाने की दिशा में आगे बढ़ा है।
।।शिव।।
फोटो सोशल मीडिया से साभार
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