नव निधि और हनुमान जी

 माँ सीता के शोक का निवारण करने वाले बाबा हनुमंत लाल जी को माता जानकी ने अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता होने का आशीर्वाद दे दिया, हमने कल अष्ट सिद्धियां की चर्चा की आज हम बात करेंगे नव निधि की। 

महापद्म निधि - जब संपत्ति का अर्जन सात्विक तरीके से किया जाए अपनी क्षमता में बढ़ोतरी समाज के हित में की जाए वह क्षमता और सामर्थ्य महापद्म निधि के रूप में संचित माना जाता है। ऐसा व्यक्ति अपनी संपदा और शक्ति का उपयोग समाज के लिए भी करता है।

पद्म निधि - बुद्धि और ज्ञान के संयुक्त रूप से अर्जित सामर्थ्य इस निधि के अंतर्गत आता है।  ऐसे व्यक्ति में सत्व और रजो गुण दोनों होते है।

मुकुंद निधि - ऐसी निधि ईश्वरीय अनुकंपा से ही प्राप्त होती है, यह निधि सकारात्मक सोच और करुणा के भाव से अर्जित होती है। ऐसे व्यक्ति भावनात्मक रूप से लोगों से जुड़ते है।

नंद निधि - विचारों की सकारात्मकता इतनी की घोर नकारात्मकता के माहौल में भी सहज  और प्रसन्नचित व्यक्ति रहता है।

मकर निधि - नवाचार,नव विचारों के प्रस्फुटन और रचनात्मकता को बढ़ाने वाली यह निधि व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण करती है।

कच्छप निधि -  अपनी क्षमता और सामर्थ्य का ढोल नहीं पीटकर लोगों से छुपकर अपने श्रेष्ठतम योगदान के लिए इस निधि के स्वामी अपना योगदान देते है।

शंख निधि - विचारों की स्पष्टता, विचार के प्रकटीकरण में मुखरता का प्रतिनिधित्व करने वाली यह निधि शंख की तरह व्यक्ति की उपलब्धियों का जयनाद करती है।

कुण्ड निधि - केवल विद्यावान ही नहीं बल्कि विद्या के उपयोग से गुणी और विश्लेषणात्मक क्षमता के कारण चातुर्य से परिपूर्णता वाली यह निधि है।

खारवा निधि - संपत्ति, सुख सुविधाओं के लिए भौतिक संसाधन की प्रचुरता की द्योतक यह निधि व्यक्ति को आर्थिक रूप से सक्षम बनाती है।

हमारे यहां खजाने में केवल धन संपदा की ही बात नहीं की गई बल्कि व्यक्ति के गुना की भी आवश्यकता समझी गई है इसीलिए बाबा हनुमंत लाल जी के लिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में लिखा है 

विद्यावान गुणी अति चातुर 

 राम काज कर बेगो आतुर।

केवल पढ़े लिखे नहीं,केवल डिग्री धारी नहीं बल्कि गुणी और चतुर भी थे,हनुमान जी महाराज।

वैसे ही लिखा है

महाबीर बिक्रम बजरंगी, 

कुमति निवार सुमति के संगी।

कंचन बरन बिराज सुबेसा, 

कानन कुंडल कुंचित केसा॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे, 

कांधे मूंज जनेऊ साजै।

भाव समझे तो पाएंगे बाबा हनुमंत जी महावीर और बजरंगी है कुमति निवार... ( अर्थात् कुसंग नहीं करते, सुमति की संगत करते है ) हमारे साथ कौन रहते है,विचार करना चाहिए।

अगली पंक्ति में हनुमान जी के ड्रेस अप का बखान है कानन कुंडल.... हम कैसे रहते है,इस पर भी विचार की जरूरत है, समाज में,परिवार में हम कहीं जाते है तो हमारे परिधान क्या हो.. मंदिर फैशन प्रदर्शन के केंद्र नहीं आराधना के केंद्र है, स्कूलों में ड्रेस को छोड़ अपनी मर्जी करने की जिद्द भी विघटन कारी मानसिकता को ही प्रदर्शित करती है।

आज बस इतना ही।

।।शिव।।

जय श्री राम

#हनुमानजी #नव_निधि #रामायण #हनुमानचालीसा 

Comments

Anonymous said…
शिव जी आप तो बहुत अच्छा लिख बता रहे है,
जय जय सियाराम
जय श्री राम
आभार आपका
Rajput said…
शब्दों का व्याख्यान करने वाले व्याख्याता हो माननीय , जय हो आपकी

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