नवरात्र विचार 2 लक्ष्य का सन्धान करें
नवरात्र चल रहे है तो शक्ति की उपासना घर घर हो रही है, बात शक्ति की हो तो बाबा हनुमंत लाल जी का स्मरण तो सबको आता ही है, वे ना केवल शक्ति के बल्कि युक्ति के भी देवता है।
हर बार जीत की दूदूम्भी नहीं बजाई जाती, लक्ष्य पर नजर रखकर काम करने की प्रेरणा देते है हनुमंत लाल जी।
शक्ति की उपासना के पर्व में हनुमंत लाल जी की आराधना में सुन्दरकाण्ड के पाठ भी हो ही रहे है तो आइये, जीवन का एक मंत्र वहीं से सीखते है। बाबा हनुमंत लाल जी ने लंका की अशोक वाटिका में पहुंचकर माता जानकी के दर्शन करने के उपरांत अशोक वाटिका का विध्वंस किया साथ ही निशाचरों को दौड़ा-दौड़ा कर मारा, रावण के पुत्र अक्षय कुमार का भी वध किया फिर ब्रह्मास्त्र का मान रखने के लिए मेघनाथ के हाथों बंध कर लंका के राज दरबार में रावण के सम्मुख पहुंचे और फिर लंका जलाकर भगवान राम के पास वापस आए यह हम सब जानते हैं।
पर जाते समय माता सीता का पता लगाने से पहले वे सूक्ष्म रूप धारण करते है, वे जब बाद में सब कुछ तोड़ते, जलाते है तो पहले छुपे क्यों? क्या उन्हें किसी बात का डर था?
नहीं, उनके लिए महत्वपूर्ण था अपने लक्ष्य को प्राप्त करना और उनका लक्ष्य था माता सीता का पता लगाना, इसलिए अपने लक्ष्य को अपनी नजरों से ओझल किए बिना किसी भी युक्ति से वे अपना काम करें यह उनके लिए प्राथमिकता थी ना कि हर जगह युद्ध करना,लड़ना और उन पर विजय प्राप्त करना।
इसीलिए जब वे लंका में प्रवेश करते हैं तब श्री रामचरितमानस में लिखा गया है
मसक समान रूप कपि धरी।
लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥
नाम लंकिनी एक निसिचरी।
सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥
और जब वे लंका के महलों, गलियों में माता सीता का पता लगाने की कोशिश करते है तब भी
पुर रखवारे देखि बहु
कपि मन कीन्ह बिचार।
अति लघु रूप धरों निसि
नगर करौं पइसार॥
श्री रामचरितमानस में बाबा हनुमंत लाल जी के लिए जो लिखा गया है वह हमें प्रेरित करता है कि हम अपने लक्ष्य के लिए सावचेत रहें, सजग रहे और लक्ष्य के मार्ग में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं में उलझे नहीं युक्ति से उनसे पार पालें और अपने लक्ष्य को प्राप्त करें।
आइये, इस नवरात्र से जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बाबा हनुमंत लाल जी द्वारा दी गई सीख को स्वीकार करें।
द्वितीय नवरात्र की शुभकामनायें।
।। शिव।।
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