सुनो!मुझे आपकी बहुत जरूरत है.. .एक पाती अपनों के नाम... कोरोना के डर से घर के एक कोने में दुबका बैठा हूं मैं,और मुझे याद आ रही है आप सब की । संबोधन देना चाहता था, सबसे पहले पर... क्या संबोधन दूँ... मित्र कहूं, बंधु कहूं, बहन कहूं, ... . इसलिए बिना संबोधन अपना यह पत्र लिखना शुरू किया है..... कभी आपकी गोद में खेला होऊंगा मैं.... कभी आंचल की ओट में छुपा होऊंगा मैं..... कभी अंगुली पकड़कर चला होऊंगा मैं.... कभी रास्ते जाते आपको आवाज लगाई होगी मैंने तुतलाकर.... कभी भटक गया होगा तो आपसे रास्ता पूछा होगा मैंने.... कभी पहला अक्षर,पहला अंक से आज खड़ा होने लायक बनाया होगा आपने....कभी आपने मुझे लिफ्ट दी होगी या मेरी वाहन के चालक बन मेरा सफर आसान किया होगा। कभी सहयात्री बनकर मुझसे बातें मीठी की होगी.... कभी क्लास की बेंच पर साथ बैठकर हंसी ठिठोली की होगी...... कभी पढ़े होंगे हम साथ बैठकर..... कभी खेले होंगे खेल के मैदान में.... कभी साइकिल की पंचर निकाली होगी... कभी भूल गया मैं पेन तो आपने दिया होगा..... कभी रास्ते में साइड देकर मेरा सफर आसान किया होगा..... कभी जिम्मेदारी से चला कर गाड़ी ...
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शिक्षक को शिक्षक ही समझिए साहब..... पूरी दुनिया एक महामारी का मुकाबला कर रही है भारत भी इस महामारी से इन दिनों दो-दो हाथ कर रहा है। प्रकृति प्रदत नहीं बल्कि मानव प्रदत इस विभीषिका से संपूर्ण मानवता का नाश होने की आशंका है यदि ऐसा नहीं होता तो जो सरकारें बड़ी से बड़ी समस्या पर हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाती हैं,वे मुस्तेद हुई है तो तय मानिए खतरा बहुत बड़ा है। जिस तेजी के साथ काम कर रही है जिस तेजी के साथ निर्णय प्रक्रिया की पालना कर रही है आश्चर्यचकित करने वाला है या यूं कहें कि खतरा बडा है । देश के प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से बयान देने के लिए आते हैं,आग्रह करते हैं कि 1 दिन के लिए जनता कर्फ्यू लगाए ताकि सामाजिक संपर्क से कोरोना वायरस की तीसरे चरण की शुरुआत रोकी जा सके। देश उनके साथ खड़ा होता है और 22 मार्च को पूरा देश सुबह से लगाकर शाम तक स्व प्रेरित अनुशासित और संयमित जनता कर्फ्यू का पालन करता है । ठीक 5:00 बजे प्रधानमंत्री के आह्वान पर अपने घरों की बालकनी और छत पर खड़ा होकर ताली शंख घंटी आदि बजाकर इस महामारी के वक्त सीना तान कर खड़े हुए चिकित्सा कर्मियों, चिकित्स...