नवरात्र विचार -3 कैसे हो सलाहकार?
नवरात्र विचार में आज बात करते हैं कि हमारे सलाहकार कैसे हो और हम सलाहकार कैसे हो ?
जब सुंदरकांड का हम पाठ करते हैं तब उसमें विभीषणजी रावण को समझाते हैं उस समय रावण की सभा में जो प्रतिक्रिया होती है उसको लेकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है-
सचिव बैद गुर तीनि जौं
प्रिय बोलहिं भय आस
राज धर्म तन तीनि कर
होइ बेगिहीं नास॥
मंत्री, वैद्य और गुरु- ये तीन यदि (अप्रसन्नता के) भय या (लाभ की) आशा से (हित की बात न कहकर) प्रिय बोलते हैं (ठकुर सुहाती कहने लगते हैं), तो (क्रमशः) राज्य, शरीर और धर्म- इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है॥
चाटुकारों, डरपोक और स्वार्थी लोगों से घिरा रावण अपनी बुद्धिमत्ता, वीरता और ऐश्वर्य के होते हुए भी नाश को प्राप्त होता है, कीर्ति, यश,तेज, ज्ञान सब कुछ नष्ट हो गया क्योंकि अहंकार हो गया उसे अपने पास सब कुछ होने का और इस अहंकार का पोषण उसके सचिव सलाहकार ही कर रहे थे।
वहीं रामजी की सेना में सलाहकार की भूमिका में जामवंत जी थे, उनकी सलाह कैसी होती थी उसे देखने के लिए हमें किष्किन्धा-काण्ड के उस भाग में जाना है जहां वानर दल माता जानकी की खोज करते हुए सागर के किनारे जाकर निराशा में डूब जाता है आगे जाने का कोई रास्ता नहीं दिखता तब उन्हें संपाती मिलते हैं उनसे चर्चा के बाद के भाग को आइये, हम पढ़ते हैं-
जरठ भयउँ अब कहइ रिछेसा।
नहिं तन रहा प्रथम बल लेसा॥
जबहिं त्रिबिक्रम भए खरारी।
तब मैं तरुन रहेउँ बल भारी॥
ऋक्षराज जाम्बवान् कहने लगे- मैं बूढ़ा हो गया। शरीर में पहले वाले बल का लेश भी नहीं रहा। जब खरारि (खर के शत्रु श्री राम) वामन बने थे, तब मैं जवान था और मुझ में बड़ा बल था॥
बलि बाँधत प्रभु बाढ़ेउ
सो तनु बरनि न जाइ।
उभय घरी महँ दीन्हीं
सात प्रदच्छिन धाइ॥
बलि के बाँधते समय प्रभु इतने बढ़े कि उस शरीर का वर्णन नहीं हो सकता, किंतु मैंने दो ही घड़ी में दौड़कर (उस शरीर की) सात प्रदक्षिणाएँ कर लीं॥
अंगद कहइ जाउँ मैं पारा।
जियँ संसय कछु फिरती बारा॥
जामवंत कह तुम्ह सब लायक।
पठइअ किमि सबही कर नायक॥
अंगद ने कहा- मैं पार तो चला जाऊँगा, परंतु लौटते समय के लिए हृदय में कुछ संदेह है। जाम्बवान् ने कहा- तुम सब प्रकार से योग्य हो, परंतु तुम सबके नेता हो, तुम्हे कैसे भेजा जाए?॥
कहइ रीछपति सुनु हनुमाना।
का चुप साधि रहेहु बलवाना॥
पवन तनय बल पवन समाना।
बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥
ऋक्षराज जाम्बवान् ने श्री हनुमानजी से कहा- हे हनुमान्! हे बलवान्! सुनो, तुमने यह क्या चुप साध रखी है? तुम पवन के पुत्र हो और बल में पवन के समान हो। तुम बुद्धि-विवेक और विज्ञान की खान हो॥
कवन सो काज कठिन जग माहीं।
जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा।
सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥
जगत् में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके। श्री रामजी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान्जी पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए॥
कनक बरन तन तेज बिराजा।
मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥
सिंहनाद करि बारहिं बारा।
लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा॥
उनका सोने का सा रंग है, शरीर पर तेज सुशोभित है, मानो दूसरा पर्वतों का राजा सुमेरु हो। हनुमान्जी ने बार-बार सिंहनाद करके कहा- मैं इस खारे समुद्र को खेल में ही लाँघ सकता हूँ॥
सहित सहाय रावनहि मारी।
आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी॥
जामवंत मैं पूँछउँ तोही।
उचित सिखावनु दीजहु मोही॥
और सहायकों सहित रावण को मारकर त्रिकूट पर्वत को उखाड़कर यहाँ ला सकता हूँ। हे जाम्बवान्! मैं तुमसे पूछता हूँ, तुम मुझे उचित सीख देना (कि मुझे क्या करना चाहिए)॥
एतना करहु तात तुम्ह जाई।
सीतहि देखि कहहु सुधि आई॥
तब निज भुज बल राजिवनैना।
कौतुक लागि संग कपि सेना॥
(जाम्बवान् ने कहा-) हे तात! तुम जाकर इतना ही करो कि सीताजी को देखकर लौट आओ और उनकी खबर कह दो। फिर कमलनयन श्री रामजी अपने बाहुबल से (ही राक्षसों का संहार कर सीताजी को ले आएँगे, केवल) खेल के लिए ही वे वानरों की सेना साथ लेंगे॥
कपि सेन संग सँघारि निसिचर
रामु सीतहि आनि हैं।
त्रैलोक पावन सुजसु
सुर मुनि नारदादि बखानि हैं॥
जो सुनत गावत कहत समुझत
परमपद नर पावई।
रघुबीर पद पाथोज मधुकर
दास तुलसी गावई॥
वानरों की सेना साथ लेकर राक्षसों का संहार करके श्री रामजी सीताजी को ले आएँगे। तब देवता और नारदादि मुनि भगवान् के तीनों लोकों को पवित्र करने वाले सुंदर यश का बखान करेंगे, जिसे सुनने, गाने, कहने और समझने से मनुष्य परमपद पाते हैं और जिसे श्री रघुवीर के चरणकमल का मधुकर (भ्रमर) तुलसीदास गाता है।
यहाँ हमने पढ़ा कि जामवंत जी किस प्रकार सलाह दे रहे हैं, वह खुद की शक्ति के बारे में बताते हैं फिर अपनी उम्र का हवाला देकर अपने आपको इस योग्य नहीं पाते यह स्वीकार करते है। युवराज होते हुए भी अंगद अपनी कमजोरी को स्वीकार करते हैं, उस पूरे दल में जो योग्य है और भगवान श्री राम ने जिनका चयन किया है वे जब कर्तव्यविमुख होते हैं तब उन्हें अपना लक्ष्य याद दिलाते हुए कहते हैं कि आपके जन्म की सार्थकता राम के कार्य को करना है, इतना ही नहीं जब हनुमान जी को अपनी शक्ति का भान हो जाता है तब वह कहते हैं कि मैं पूरी लंका को उठाकर ले आऊंगा, रावण सहित असुरों का नाश कर दूंगा तब वे उन्हें टोकते भी है और बताते हैं कि आपका काम केवल माता जानकी का पता लगाना है बाकी काम रामजी करेंगे।
यह संतुलित सलाह है और इससे ही हनुमान जी का यश बढ़ा है।
इसीलिए तो गोस्वामी तुलसीदास जी ने सुंदरकांड में ऊपर वाली पंक्तियां लिखी है -
सचिव बैद गुर तीनि जौं
प्रिय बोलहिं भय आस
राज धर्म तन तीनि कर
होइ बेगिहीं नास॥
आइये, हम सही सलाहकारों का चयन करें अपने जीवन में और कभी सलाह देने की जरूरत पड़े, तो जिसे सलाह दे रहे है उसके जीवन में यश कीर्ति की अभिवृद्धि हो, इसकी भी जिम्मेदारी निभाएं।
आज बस इतना ही....
तृतीय नवरात्र की शुभकामनायें
।। शिव।।
Comments