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Showing posts from October, 2019
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एक सामान्य कार्यकर्ता से शुरू हुआ सफर आज एक पड़ाव के रूप में राजस्थान जैसे विशाल राज्य के भाजपा परिवार के मुखिया के रूप में श्री सतीश पूनिया के जीवन में आया है। सतीश पूनिया वैसे तो स्वभाविक कार्यकर्ता हैं पर उन्हें जिन कुशल हाथों ने गढ़ा है वे नीति,नियम,सिद्धांत,नेतृत्व क्षमता, समता जैसे गुणों से परिपूर्ण करने वाले हाथ हैं । वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक तो हैं ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ही पहले अनुषांगिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता है । वहां से छात्र नेता बने हैं,युवा नेता के रूप में भारतीय जनता पार्टी के युवा मोर्चा की कमान संभाली,भाजपा के मंत्री,महामंत्री सहित अनेक जिम्मेदारी के निर्वहन के अनुभव के साथ ही आज निर्वाचित जनप्रतिनिधि भी  है । राजस्थान की विधानसभा में न केवल अपने विधानसभा क्षेत्र आमेंर की आवाज बुलंद करते हैं बल्कि राजस्थान के युवाओं,गरीबों,किसानों,मजदूरों के हक की बात रखने में अग्रणी समझे जाते है। साधारण व्यक्ति के जीवन में यह पड़ाव बहुत मायने रखता है निश्चित ही यह सतीशजी के जीवन में भी बहुत मायने रखता है।  मंच से द...

राम हो जीवन आदर्श तो हर दिन विजयोत्सव...

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जीवन में दीपावली जैसा उत्साह चाहिए तो आपके जीवन में विजयदशमी जैसा पर्व भी होना चाहिये...... विजयदशमी जैसा पर्व आपके जीवन में हो तो  अपने शक्ति सामर्थ्य के बारे में आत्म चिंतन औऱ उसे बढ़ाने के उपाय वाली नवरात्र भी होनी चाहिए..... उसके साथ आपको अपने पूर्वजों का, अपने इतिहास का ज्ञान भी होना चाहिए...क्योंकि इतिहास की सीख आपकी जय में बहुत महत्वपूर्ण होती है.... यही तो है जीवन का सच। इसीलिए पहले श्रद्धा से भरे श्राद्ध के दिन.... फिर नवरात्र, विजयादशमी और फिर दीपावली ......और दीपावली में भी पहले आरोग्य,धन ( धन त्रयोदशी)फिर रूप  स्वयं का भी और समाज का भी ( रूप चतुर्दशी-नरक चतुर्दशी )और फिर दीपावली । दीपावली केवल आपके लिए नहीं .... सबके लिए .... सबके घर धन,सब के घर खुशियों की दीवाली ....इसके बाद प्रकृति पूजा अर्थात गोवर्धन पूजन....आपसी सद्भाव की रामा श्यामा....भारतीय परंपराएं ऐसे ही नहीं बनी..... कि किसी ने अचानक सोचा और उसने तय कर दी.....  365 दिन का विचार हुआ है.... हर चीज का क्रम है । आज मैं गूगल पर देख रहा था श्री लंका से अयोध्या की दूरी 20 दिन से अधिक बताते हैं पैदल क...

जब जीरो (शून्य) दिया मेरे भारत ने, दुनिया को तब गिनती आयी...

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एक फिल्म आई थी जिसमें फिल्म का कलाकार नायक को संबोधित करते हुए कहता है व्हाट इज योर कंट्रीब्यूशन ....योर कंट्रीब्यूशन जीरो नायक कहता है हां!हमारा योगदान है जीरो.... सोचिए अगर जीरो नहीं होता तो क्या होता जीरो की बिना क्या सौ,हजार,लाख, करोड़, अरब... ऐसी राशियों की कल्पना कर सकते हैं? भारत में लगभग 200 (500) ईसा पूर्व छंद शास्त्र के प्रणेता पिंगलाचार्य हुए हैं (चाणक्य के बाद) जिन्हें द्विअंकीय गणित का भी प्रणेता माना जाता है। इसी काल में पाणिणी हुए हैं जिनको संस्कृत का व्याकरण लिखने का श्रेय जाता है। अधिकतर विद्वान पिंगलाचार्य को शून्य का आविष्कारक मानते हैं। पिंगलाचार्य के छंदों के नियमों को यदि गणितीय दृष्टि से देखें तो एक तरह से वे द्विअंकीय (बाइनरी) गणित का कार्य करते हैं और दूसरी दृष्टि से उनमें दो अंकों के घन समीकरण तथा चतुर्घाती समीकरण के हल दिखते हैं। गणित की इतनी ऊंची समझ के पहले अवश्य ही किसी ने उसकी प्राथमिक अवधारणा को भी समझा होगा। अत: भारत में शून्य की खोज ईसा से 200 वर्ष से भी पुरानी हो सकती है। आर्यभट्ट (जन्म 476 ई.) को शून्य का आविष्कारक नहीं माना जा सकता। आर्यभट्...

जीवन प्रबंध के अधिष्ठाता है श्री राम...नवरात्र विचार ७

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जानकीनाथ श्रीराम केवल पुराण पुरुष नहीं बल्कि जीवन प्रबंध,कौशल के अधिष्ठाता है..... नवरात्र में बहुत सारे लोग नवराह्नपरायण के रूप में श्री राम चरित मानस का पाठ करते हैं.... कुछ लोग बाबा हनुमंत लाल जी के सुंदरकांड का पाठ करते हैं .....कुछ लोग माता जगदंबिका के दुर्गा सप्तशती के पाठ करते हैं। कुछ अन्य मंत्रों के माध्यम से माता भगवती को प्रसन्न करते है ।श्री राम चरित मानस का पाठ करने के पीछे मुझे लगता है जो गंभीर विषय है वह है विजयादशमी उत्सव का अगले दिन होना,जो श्री राम की रावण पर विजय का उत्सव है और अधर्म पर धर्म की जय का महोत्सव है।  शक्ति पर्व के मध्य रामजी जैसी मर्यादा जीवन में उतारने और उससे समाज में विजयश्री हासिल कर जीवन में दीपोत्सव सा आनंद लाने के लिए श्री राम चरित्र मानस के पठन की परंपरा शुरू हुई होगी । राम केवल पुराण पुरुष नहीं है,बल्कि जीवन जीने के प्रबंध कौशल के अधिष्ठाता है । जीवन में सफल होना है तो सबसे जरूरी है आप में धैर्य का होना,श्रीराम के जीवन में धैर्य की पराकाष्ठा है ....आप सोचिए एक व्यक्ति जिसको प्रातः राज पाट संभालना है उसे यकायक कहा जाए कि वल्कल वस्त्र धा...

कैसे दोस्त है,आप? रामजी ने बताये अच्छे दोस्त के गुण...नवरात्र विचार ६

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जीवन एक तरह से युद्ध के समान होता है, इस जीवनरूपी नैया में समय समय पर परेशानियां भी आती रहती हैं। समय समय पर विभिन्न विपत्तियां आती हैं। इन विपत्तियों में हमें अपनों की पहचान हो पाती है। दुःख, मुसीबत में ही परम मित्र की सत्यता का प्रमाण मिलता है। किसी ने यहां तक कहा है कि सच्चा प्यार तो भी मिल जाता है लेकिन सच्चा मित्र मिलना बहुत मुश्किल है। कौन हमारा अच्छा मित्र है जो सदैव हमारे हित के बारे में ही सोचता है और कौन हमारा बुरा मित्र है, इसकी पहचान होना अति आवश्यक है। अच्छे मित्र के बारे में श्रीरामचरितमानस में जिक्र किया है। आइए आज हम श्रीरामचरितमानस में मित्र धर्म पर की गई कुछ बातों को समझे और अपने आपको परखें,क्या हम किसी के सच्चे मित्र है? मित्र के दुःख से होता है दुःख? जे न मित्र दुःख होहि दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।। निज दुख गिरि सम  रज करि जाना।  मित्रक दुख रज मेरू समाना।। जिन्ह कें असि मति सहज न आई।  ते सठ कत हठि करत मिताई।।  जो मित्र अपने मित्र के दुःख में दुःखी ना हो, उन्हें देखकर ही पाप लगता है। अपने दुख को मित्र के दुःख के सामने रज के सम...

आएंगे राम,सबरी की तरह सब्र तो करिये....नवरात्र विचार ५

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शबरी का वास्तविक नाम श्रमणा था । श्रमणा भील समुदाय की "शबरी " जाति  से सम्बंधित थी । संभवतः इसी कारण श्रमणा को शबरी नाम दिया गया था । पौराणिक संदर्भों के अनुसार श्रमणा एक कुलीन ह्रदय की प्रभु राम की एक अनन्य भक्त  थी ,पारिवारिक कारणों से श्रमणा ने ऋषि मातंग के आश्रम में शरण ली । आश्रम में श्रमणा श्रीराम का भजन  और ऋषियों की सेवा-सुश्रुषा करती हुई अपना समय व्यतीत करने लगी । शबरी को भक्ति - साहित्य में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है ।  भक्ति ग्रन्थों में उल्लेख है कि प्रभु राम ने शबरी के झूठे फल खाए थे । पौराणिक सन्दर्भों के अनुसार, बेर कहीं खट्टे न हों, इसलिए अपने इष्ट की भक्ति की मदहोशी से ग्रसित शबरी ने बेरों को चख-चखकर श्रीराम व लक्ष्मण को भेंट करने शुरू कर दिए। श्रीराम शबरी की अगाध श्रद्धा व अनन्य भक्ति के वशीभूत होकर सहज भाव एवं प्रेम के साथ झूठे बेर अनवरत रूप से खाते रहे, लेकिन लक्ष्मण ने झूठे बेर खाने में संकोच किया। उसने नजर बचाते हुए वे झूठे बेर एक तरफ फेंक दिए। माना जाता है कि लक्ष्मण द्वारा फेंके गए यही झूठे बेर, बाद में जड़ी-बूटी बनकर उग आए। समय बीतने पर ...

नारी तेरा नहीं कोई सानी.....नवरात्र विचार ४

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नारी स्वत्रंता के पैरोकार जब भी अपनी चोंच खोलते है तो भारतीय विचार को कोसने से बाज नहीं आते.....कोई रामायण की एक चौपाई बिना संदर्भ जाने लेकर बैठ जाते है..... कोई बिना संदर्भ जाने,बिना पूरा पढ़े,बिना पर्यायवाची शब्दों को देखे अपने अध कचरे ज्ञान के बल पर उल्टी करने लगता है.... भारत का मूल विचार नारी के बारे में कहता है...यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमते तत्र देवता.....और बिना किसी भेदभाव घोषणा करते है.....कृण्वन्तो विश्वमार्यम..... पर मध्यकाल जिसे कुछ लोग स्वर्णिम काल कहते नहीं अघाते पर उस दौरान आई विकृति और कुछ लोगों के स्वार्थ ने गड़बड़ झाला कर दिया अन्यथा यदि भाषा की प्राचीनता के आधार पर विवेकपूर्ण अध्ययन किया जाए तो यही पाएंगे कि वैदिक साहित्य, शास्त्रीय प्रतिपादन नारी की गरिमा गान करते अघाते नहीं। सबसे पहले यदि प्राचीन ग्रंथों में नारी के लिए प्रयुक्त सभी शब्दों की व्युत्पत्ति पर ही विचार करें, तो भी स्पष्ट हो जाएगा कि मध्यकालीन अन्धकार युग से पहले अपने यहाँ महिलाओं के प्रति समाजशास्त्रियों का मनोभाव क्या था ? उदाहरण के लिए महिला शब्द को ही लें - मह + इल च् + आ = महिला। मह का अर्थ...

रिश्तों को सहजिये...…नवरात्र विचार 3

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नवरात्र विचार -३ टूट रहे है परिवार....टूटते परिवारों की सिसकियां आज भले ही मंद मंद सुन रही है इसे अनसुना कर सकते है पर जब कृन्दन होगा तो सुन नहीं पाओगे.... दरक रहे रिश्तों को संभाल लीजिए, अभी बहुत अधिक नहीं बिगड़ा है....अहम का वहम..... कहीं बिना गाड़ी की स्टेपनी और सुनसान जंगल में गाड़ी पंचर वाले हालात में ना पहुंचा दें....... पैसा,तरक्की,नाम,शौहरत सब फीकी पड़ जाती है जब गम में साथ देने के लिए एक कंधा,एक कदम नहीं मिलता....सोचिए? एक दिन मेरे मित्र का फ़ोन आया, भाई! मेरे बॉस की माताजी का देहावसान हो गया ,उनका पार्थिव शरीर एस एम एस हॉस्पिटल की मोर्चरी में रखा है। कोई सुन नहीं रहा.... मुझे दुःख था, तो आश्चर्य भी कि बॉस मतलब बड़ा आदमी और इतना निरीह...? जब मैं वहां पहुंचा तो देखता हूं बॉस नामक प्राणी मोर्चरी के बाहर सड़क पर बैठा है । उसके साथ आए लोग उससे दूर खड़े गपशप लगाने में मशगूल है । ईश्वर की कृपा ही थी कि मैंने अपने संबंधों का इस्तेमाल किया और उनका काम हो गया। उनकी माता जी को सर्पदंश लगा था और समय पर पता नहीं चलने के कारण जहर शरीर में फैल गया था।  हॉस्पिटल  लाते समय रास्...

फिर मत आना,बापू!

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क्या अर्पित करूं बापू तेरे जन्मदिन पर.... यहां फूल है पर कागजी.... तेरे पद चिन्हों पर चलने का संकल्प है पर बनावटी .....आज तुम्हें श्रद्धा से याद करेंगे,पूरे देश में पर  एक आग्रह है बापू फिर मत आ जाना इस देश । क्योंकि अब तुम से ही तुम्हारे होने का प्रमाण मांगेंगे, भले ही तुम्हारे जन्मदिन पर 1 दिन की छुट्टी हम सब मना ले ...वैसे ही जैसे तुम्हारे आराध्य राम के होने पर सवाल उठता है।  बचपन में एक कमरे से दूसरे कमरे में जाते समय डरते मोहन को माँ ने कहा था, जब राम साथ होते हैं तो डरते नहीं और उस राम को जीवन भर अपने मन में बसा लेने वाले मोहन महात्मा बन गए । आज तुम्हारे वही राम जज साहब की कुर्सी के पीछे लगी तुम्हारी ही तस्वीर के सामने अपने होने का प्रमाण वकीलों के माध्यम से देने को मजबूर है।  हां बापू! आओ तो किसी गाय के सामने से मत निकल जाना, नहीं तो वह सवाल करेगी कि तुमने ही तो कहा था बापू! कि देश एक दिन के लिए भी आजाद हो जाए तो मैं सबसे पहला काम करूंगा गोहत्या बंदी ....पर आजादी के 70 साल बाद भी गाय यूं ही कटती है और अब गौहत्या बंदी पर रोक लगाने की मांग करने वाले सांप्रदाय...

नवरात्र विचार 2

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नवरात्रा विचार प्रवाह-२ नवरात्र के 9 दिन,शक्ति के आह्वान के,अपने सामर्थ्य के आत्म अवलोकन के 9 दिन, शक्ति के नियोजन के लिए 9 दिन और नौ शक्तियों को एकमेव करने के 9 दिन । मेरा मानना है कि नवरात्रा के 9 दिन हमें नौ शक्तियों के आत्मावलोकन,विवेचन और शक्ति को बढ़ाने के लिए मिलते है। इसे एक अवसर  के रूप में लेना चाहिए। मेरा मानना है पहली शक्ति के रूप में -व्यक्ति शारीरिक रूप से सक्षम हो -व्यक्ति शारीरिक रूप से,आरोग्य से परिपूर्ण हो,किसी भी प्रकार के घात-प्रतिघातों का मुकाबला करने में समर्थ हो। दूसरी शक्ति के रूप में व्यक्ति मानसिक-बौद्धिक रूप से सक्षम हो- व्यक्ति बुद्धिमान,विवेकशील हो ताकि परिस्थितियों का मुकाबला करने का साहस उसमें हो,सटीक निर्णय कर सके और बाहरी-भीतरी शत्रुओं को समझ सके। तीसरी शक्ति के रूप में पारिवारिक एकता, समझ और सामंजस्य की ताकत - पारिवारिक ऐक्य भाव व्यक्ति को मजबूत बनाते है,उनका आपसी सामंजस्य उन्हें बलिष्ठ बनाता है ( 100 नहीं 105 है का भाव ) इसलिए पारिवारिक एकजुटता शक्ति का एक अहम केंद्र है।  चौथी शक्ति के रूप में आर्थिक रूप से सक्षम हो - आर्थिक रूप से ...