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Showing posts from May, 2021

सहेली

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मीनाक्षी लाइब्रेरी के दरवाजे पर इस तरह खड़ी हो गई कि   जाह्नवी उसके अंदर नहीं आ पाए, जानबूझकर मीनाक्षी  ऐसे काम करती जिससे  जाह्नवी को हैरान होना पड़े।  जाह्नवी जानती थी कि मीनाक्षी से कुछ भी कहना बेकार है, इसलिए वो वापस पलट गई। पीछे जोरदार ठहाका लगा। जाह्नवी की आंखों मे नमी उतर आई। कभी वे  दोनों पक्की सहेलियां हुआ करती थी। हर बात का साथ था दोनों का। पर आज केवल प्रतिद्वंद्वी।  उनका दोस्ताना देख कितनी कोशिश चलती रहती कि इस दोस्ती मे दरार पड़ जाए। मालुम तो सबको ही था कि मीनाक्षी कान की कितनी कच्ची है,जाह्नवी ही उसे संभाल रखती। "पहले कही बात को परखो फिर विश्वास करो" कितनी बार तो जाह्नवी ये बात मीनाक्षी के कानों मे डाल चुकी थी, उसे कहां पता था कि उसकी सीख ऐसे हवा मे उड़ जाएगी। दोनों पढ़ाई के साथ लॉन्ग टेनिस मे भी माहिर थीं। इस बार खिलाड़ियों का चयन होना था स्टेट लेवल पर। शुरुआती प्रतियोगिता में ही दोनों आमने-सामने थीं। ये केवल इत्तेफाक था कि जाह्नवी का लगाया जोरदार शॉट, मीनाक्षी की उगलियों को चोटिल कर गया। इसी आधार पर उसे प्रतियोगिता से बाहर होना पड़ा। जाह्नवी क...

कर्ज चावल का

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  बात बहुत पुरानी है, देवगढ़ में मोहन नाम का एक लड़का रहता था। वह बहुत शैतान था। हर दिन उसकी शिकायतें उसके माता-पिता को सुनने को मिलतीं। पिता ने मोहन को विद्यालय भेज दिया, लेकिन उसकी शरारतों से शिक्षक भी बहुत दुखी हो गए। उस पर अपने शिक्षक की बातों का भी कोई असर नहीं होता था। मोहन कई बार बच्चों की सीट के नीचे चींटियां छोड़ देता, जिससे वे ठीक से पढ़ न पाते। बच्चे उसके डर से उसकी शरारतों के बारे में अपने शिक्षकों से भी शिकायत न करते। एक दिन तंग आकर मास्टरजी ने उसे विद्यालय से निकाल दिया। अब तो वह और भी मुक्त हो गया था सारे दिन घर से बाहर घूमता रहता था। मोहन के गांव में एक बूढ़ा आदमी भीख मांगने आता था। वह उसे भी बहुत तंग करता। कभी उसका थैला छीनकर उसमें रखी रोटी निकालकर जानवरों को खिला देता, तो कभी बूढ़े पर पानी डाल देता। लेकिन बूढ़ा उसके गांव में जरूर आता। लोग उससे पूछते कि इतना तंग होने के बाद भी वह इस गांव में भीख मांगने क्यों आता है?  वह सबको एक ही उत्तर देता, “बच्चे शरारत नहीं करेंगे, तो क्या हम बड़े लोग करेंगे?” उसकी बात सुनकर लोग चुप हो जाते। इस प्रकार कई महीने बीत गए। एक दि...

पका चावल

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 महेश बचपन से ही मेधावी छात्र था। उसने माध्यमिक और उच्च माध्यमिक की बोर्ड परीक्षा में मैरिट में स्थान बनाया था। उसकी इस सफलता के बावजूद उसके माता-पिता उसे खुश नहीं थे,क्योंकि  पढाई को लेकर उसका घमंड और अपने बड़ों से तमीज से बात नहीं करता था। वह अक्सर ही लोगों से ऊंची आवाज़ मे बात करता और अकारण ही उनका मजाक उड़ा देता । खैर दिन बीतते गए और देखते-देखते महेश स्नातक भी हो गया। स्नातक होने के बाद महेश नौकरी की खोज में निकला। प्रतियोगी परीक्षा पास करने के बावजूद उसका इंटरव्यू में चयन नहीं हो पाता था। महेश को लगा था कि अच्छे अंक के दम पर उसे आसानी से नौकरी मिल जायेगी पर ऐसा हो न सका| काफी प्रयास के बाद भी वो सफल ना हो सका| हर बार उसका घमंड, बात करने का तरीका इंटरव्यू लेने वाले को अखर जाता और वो उसे ना लेते | निरंतर मिल रही असफलता से महेश हताश हो चुका था , पर अभी भी उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसे अपना व्यवहार बदलने की आवश्यता है। एक दिन रास्ते में शोभित की मुलाकात अपने स्कूल समय के शिक्षक से हो गयी| वह उन्हें बहुत मानता था और वे भी उससे बहुत स्नेह करते थे। महेश ने  उनको सारी बात बताई ।...

पहचान

 बात तब की है,जब दुनियां में चीजें जैसी थींं, वैसी ही दिखती भी थीं। कुछ भी ढका हुआ, छिपा हुआ नहीं था। हर कुछ वैसा ही था जैसा बाहर था वैसे ही भीतर से भी ! उन्हीं दिनों की बात सुंदरता और कुरूपता दो बहनें थीं। ‘ सुंदरता’ जितना दिखने में सुंदर थी, वैसे ही उसके कपड़े थे बेहद खूबसूरत। ‘कुरूपता’ भी जैसी थी वैसे ही कपड़े उसे पसंद थे। एक दिन दोनों बहनें नदी में नहाने गईं। नहाने के बाद कुरूपता बाहर आई और सुंदरता के कपड़े पहनकर चली गई। कुछ देर बार सुंदरता बाहर आई, लेकिन उसके कपड़े पहनकर तो कुरूपता जा चुकी थी। अब वह क्या करे? बिना कपड़ों के तो जाना मुश्किल! अंत में उसने कुरूपता के कपड़े पहन लिए। तब से ऐसा ही है। सजे-धजे सुंदर कपड़ों में कुरूपता घूमती है, और सुंदरता सुंदर होकर भी बदसूरत कपड़ों में रहती है। पहले किसी को उन्हें पहचानने में मुश्किल नहीं आती। बाहर-भीतर का भेद नहीं था। लोग उन्हें उनके कपड़ों से पहचानते और ठीक पहचानते। अब धोखे में पड़ जाते हैं। लेकिन, जिन्हें आदत थी चेहरा पढ़ने की, उन्हें सुंदरता और कुरूपता के चेहरे याद रहे। वे आज भी, उन्हें उनके असल चेहरे से पहचानते हैं, उनके आवरण स...

झूठा विश्वास

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  एक समय की बात है एक आदमी रास्ते से गुजर रहा था कि रास्ते के पास कुछ विशाल हाथी खड़े थे और सभी हाथी जंजीर के पास तो थे लेकिन बंधे हुए नहीं थे। जिसे देखकर वह व्यक्ति सहम गया और चलते चलते रुक गया लेकिन उसके आसपास चलने वाले बिना रुके हुए ही आगे बढ़ते चले गये वे हाथियों को देखकर तनिक भी भयभीत नही हुए। इसे देखकर उस व्यक्ति को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह पास खड़े उन हाथियों के महावत के पास गया और उनसे पूछा की वह इन हाथियों को ऐसे खुला क्यों छोड़ रखा है । जिसे देखकर मै तो एक पल के लिए भयभीत भी हो गया ।कही ये हाथी अचानक हमारे ऊपर हमला न कर दे और अन्य व्यक्ति बिना डरे ही आराम से चले जा रहे है आखिर ऐसा क्यों है ? उस व्यक्ति की इन बातो को सुनकर महावत बोला “ इन हाथियों को बचपन से ही जंजीरों में बाधा जाता है और फिर इन्हें भागने के लिए भी प्रेरित किया जाता है लेकिन जंजीर से बधे होने के कारण कही भी नही जा सकते है ।इसके बाद इनकी जंजीरे भी खोलकर ये सब प्रकिया की जाती है और ऐसा तब तक इनके साथ किया जाता है,जब तक इन्हें खुद विश्वास नही हो जाता है कि बिना आज्ञा के कही भी नही जा सकते है और फिर इन्हें जंजीर से ...

पापा की सीख

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 एक दिन स्कूल में छुट्टी की घोषणा होने के कारण, एक दर्जी का बेटा, अपने पापा की दुकान पर चला गया ।वहाँ जाकर वह बड़े ध्यान से अपने पापा को काम करते हुए देखने लगा । उसने देखा कि उसके पापा कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को पैर के पास टांग से दबा कर रख देते हैं । फिर सुई से उसको सीते हैं और सीने के बाद सु ई को अपनी टोपी पर लगा लेते हैं । जब उसने इसी क्रिया को चार-पाँच बार देखा तो उससे रहा नहीं गया, तो उसने अपने पापा से कहा कि वह एक बात उनसे पूछना चाहता है ? पापा ने कहा- बेटा बोलो क्या पूछना चाहते हो ? बेटा बोला- पापा मैं बड़ी देर से आपको देख रहा हूं , आप जब भी कपड़ा काटते हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देते हैं, और सुई से कपड़ा सीने के बाद, उसे टोपी पर लगा लेते हैं,  ऐसा क्यों ? इसका जो उत्तर पापा ने दिया- उन दो पंक्तियाँ में मानों उसने ज़िन्दगी का सार समझा दिया । उत्तर था- ” बेटा, कैंची काटने का काम करती है, और सुई जोड़ने का काम करती है, और काटने वाले की जगह हमेशा नीची होती है परन्तु जोड़ने वाले की जगह हमेशा ऊपर होती है । य ही कारण है कि मैं सुई को टोपी पर लगाता हूं ...

तीन सीख

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  बात बहुत पुरानी है वीरनगर में राजा शेखरेंद्र राज्य करते थे। उनके तीन पुत्र थे, देवेंद्र,हेमेंद्र,गीतेंद्र। एक दिन राजा के मन में आया कि पुत्रों  को कुछ ऐसी शिक्षा दी जाये कि समय आने पर वो राज-काज सम्भाल सकें। इसी विचार के साथ राजा ने सभी पुत्रों को दरबार में बुलाया और बोला, “ पुत्रों, हमारे राज्य में नाशपाती का कोई वृक्ष नहीं है, मैं चाहता हूँ तुम सब चार-चार महीने के अंतराल पर इस वृक्ष की तलाश में जाओ और पता लगाओ कि वो कैसा होता है ?” राजा की आज्ञा पा कर तीनो पुत्र बारी-बारी से गए और वापस लौट आये । एक वर्ष बाद राजा शेखरेंद्र ने पुनः सभी को दरबार में बुलाया और उस पेड़ के बारे में बताने को कहा। देवेंद्र बोला, “ पिताजी वह पेड़ तो बिलकुल टेढ़ा – मेढ़ा, और सूखा हुआ था ।” “ नहीं -नहीं वो तो बिलकुल हरा –भरा था, लेकिन शायद उसमे कुछ कमी थी क्योंकि उसपर एक भी फल नहीं लगा था ।”, दुसरे पुत्र हेमनेंद्र ने देवेंद्र को बीच में ही टोकते हुए कहा। फिर तीसरा पुत्र गीतेंद्र बोला, “ भैया, लगता है आप भी कोई गलत पेड़ देख आये क्योंकि मैंने सचमुच नाशपाती का पेड़ देखा, वो बहुत ही शानदार था और फलों से लदा ...

भरोसे की जीत

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  बात पुरानी है,एक आदमी रेगिस्तान में भटक गया ।आधा दिन निकल चुका था और रास्ते का कुछ पता नहीं था।वह समझ नहीं पा रहा था कि किस तरह उस रेगिस्तान से बाहर निकले।प्यास से गला सूखा जा रहा था,लेकिन पानी का दूर-दूर तक कोई नामो-निशान नहीं था। उसे एक झोपड़ी दिखाई दी,वह इस आशा में झोपड़ी की ओर चल पड़ा कि वहाँ उसे पानी अवश्य मिल जायेगा और वह वहाँ रहने वालों से रेगिस्तान से बाहर निकलने का रास्ता पूछ लेगा। लेकिन झोपड़ी में पहुँचकर वह निराश हो गया, वहाँ कोई नहीं था।लेकिन उसके बाद भी उसने भगवान पर भरोसा रखा और झोपड़ी के अंदर गया। झोपड़ी के अंदर एक हैण्डपंप लगा हुआ था,वह खुश हो गया कि अब वह अपनी प्यास बुझा सकता है।उसने भगवान को धन्यवाद दिया और हैण्डपंप चलाने लगा। लेकिन काफी प्रयास करने के बाद भी हैण्डपंप नहीं चला। वह थक कर वहीं जमीन पर लेट गया,पानी के बिना उसे अपनी ज़िंदगी खत्म होती नज़र आने लगी थी। तभी उसे झोपड़ी की छत पर पानी की एक बोतल लटकी हुई दिखाई पड़ी तब उसकी जान में जान आई। उसने सोचा कि ये भगवान की कृपा है कि पानी की ये बोतल उसे दिख गई,अब वह अपनी प्यास बुझा सकता है. उसने पानी की बोतल नीचे उतारी। लेकि...

सद कार्यों की कड़ी

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  देव नगर में जीवानंद नाम के एक सेठ रहते थे । वो आर्थिक रूप से तो सक्षम थे ही इसके साथ साथ आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से मजबूत थे।उनके द्वारा अपने धन का सदुपयोग हमेशा जनकल्याण के कामों में किया जाता था। उनके यहां काम करने वाले सेवादार भी पूरा सम्मान पाते थे ।चींटी को दाना से लगाकर हाथी के लिए खाने की प्रबंध तक बेशक ध्यान रखते थे ,अगर कोई उनके दरवाजे पर आता था। उनके बारे में कहा जाता था कि सेठ जी के यहां कोई आया तो चींटी के लिए कण और हाथी के लिए मण सब व्यवस्थाएं हो जाएगी।  एक बार उनके सिर में दर्द होने लगा चिकित्सकों से सारी दवाइयां लेने के बावजूद भी उनका कोई उपचार नहीं हो पाया ।अनेक विद्वानों ने भी अपने अपने मतानुसार उनके ऊपर औषधीय परीक्षण किये। देव नगर में ही एक अंकुर नाम का बालक रहता था वह भी पर पीड़ित की सेवा अपना धर्म समझता था। उसे जब सेठजी के बारे में पता चला तो घर पर अपनी दादी से बात की।दादी ने एक दवाई बताई कि वह जंगल में मिलती है,एक पेड़ की जड़ है और जड़ को लाकर यदि दी जाए तो सिर दर्द ठीक हो सकता है।  अंकुर उसी दिन जंगल के लिए निकल गया बस उसे पेड़ के बारे में जो ...

बड़ा सेठ

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  शहर में एक सेठ जी रहते थे।शहर के जाने-माने भामाशाह में उनकी गिनती होती थी,जो भी उनके  घर पर आता था वह खाली हाथ नहीं जाता था । इस कारण शहर में उनको नगर सेठ के रूप में पहचाना जाने लगा। एक बार सेठ जी के मित्र और परिजन बैठे चर्चा कर रहे थे ।एक मित्र ने कहा-" आपसे बड़ा सहयोग करने वाला मैंने नहीं देखा।"सेठ जी उसकी बात सुनकर नीचे जमीन की तरफ देखने लगे । अन्य मित्रों को आश्चर्य हुआ कि कोई उनकी तारीफ कर रहा है और वे उस तारीफ का मुकम्मल जवाब नहीं दे रहे हैं । एक अन्य मित्र ने सेठ जी से पूछते हुए कहा-"क्या आपको आपसे ज्यादा देने वाला कोई दिखता है?" सेठजी ने लंबी सांस खींचते हुए बोलने के लिए अपनी गर्दन ऊंची की तो उनकी आंखों में सबने नमी देखी। उन्होंने अपनी जिंदगी का एक किस्सा बताते हुए कहा- "जब मैं अपने घर से शहर के लिए निकल रहा था तो किसी साधन से यहां आने तक के मेरे पास पैसे नहीं थे, तब मेरे एक दोस्त ने अपने खेत की फसल बेचकर लाए गए रुपयों में से मुझे निकाल कर दिए और मैं उसे कई साल तक नहीं चुका पाया। मुझे कई वर्षों बाद उसकी याद आई तो मैंने उसे ढूंढा और अपने पास बुलाया। ...

ठगी

  एक समय की बात है ,एक गांव में एक मोहम्मद अली नाम का काजी रहता था।वह बहुत ही सीधा और सरल इंसान था।गांव में सब लोग उसकी सरलता के कारण इज्जत करते थे।  गांव के ही चेतन नाम के एक गड़रिया से उसकी दोस्ती थी।कुछ दिन पहले ही  उसके घर पहली संतान के रूप में एक लड़की का जन्म हुआ था इसका ध्यान रखते हुए चेतन ने एक दिन उसे एक बकरी देते हुए कहा- मुल्ला जी यह बकरी ले जाओ,बेटी के लिए दूध की व्यवस्था हो जाएगी,हां पर इसे हलाल मत कर देना। काजी ने कहा-चेतन तुम मेरे दोस्त हो,तुम्हारी निशानी और उपकार के रूप में सदा मेरे पास रहेगी। काजी बकरी को कंधे पर रखकर घर की ओर जा रहा था। रास्ते में तीन ठगों ने काजी और उसकी बकरी को देख लिया और मोहम्मद अली को ठगने का षड्यंत्र रचा । वे ठग थोड़ी-थोड़ी दूरी पर जाकर खड़े हो गए। जैसे ही काजी पहले ठग के पास से गुजरा, तो ठग जोर-जोर से हंसने लगा। मोहम्मद अली ने इसका कारण पूछा तो ठग ने कहा, ‘काजी साहब, मैं पहली बार देख रहा हूं कि एक आप जैसा सज्जन व्यक्ति अपने कंधे के ऊपर गधे को लेकर जा रहे हैं ।’ काजी को उसकी बात सुनकर गुस्सा आ गया और ठग को भला-बुरा कहते हुए आगे बढ़ ...

लक्ष्य

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  पुराने जमाने की बात है ,राजगढ़ के राजा राघवेंद्र सिंह थे। उनके कोई संतान नहीं थी, इसको लेकर भी बड़े चिंतित रहा करते थे ।उन्हें अपने राज्य के उत्तराधिकारी को लेकर बड़ी चिंता हुआ करती थी । इस विषय पर उन्होंने अपने सलाहकारों और मंत्रियों से चर्चा की.... उन सबने महाराज राघवेंद्र सिंह को सुझाव दिया कि अपने उत्तराधिकारी का चयन वे प्रजा में से किसी योग्य व्यक्ति  का करें । महाराज राघवेंद्र सिंह ने एक दिन अपनी राज सभा में घोषणा की, कि आम प्रजा में से जो व्यक्ति कल मुझे राजभवन में सबसे पहले मिलेगा उसे मेरा उत्तराधिकारी बना दिया जाएगा । राज्य के महामंत्री महेंद्र प्रताप सिंह ने महाराज से कहा - महाराज आसान काम हो गया यह तो,कोई भी आपसे मिल लेगा । महाराज ने कहा-महामंत्री जी,आप चिंता मत कीजिये,आप आयोजन की तैयारी कीजिये।राज्य को कल उत्तराधिकारी मिल जाएगा । पूरे राज्य में मुनादी करवा दी गई कि जो कल महाराज से मिलेगा उसे राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया जाएगा। अगले दिन सुबह राजभवन के सामने बड़ी संख्या में युवक आए थे ।सबके मन में इच्छा थी इतने बड़े राज्य का उत्तराधिकारी बनने की । राज भवन के द्...

सब में राम

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 आश्रम में गुरु से शिक्षा प्राप्त कर एक शिष्य अपने घर की ओर लौट रहा था।रास्ते में एक लड़का मिला-कहाँ जा रहे हो वटुक? आगे एक हाथी पागल हो गया है वो आ रहा है,, शिष्य ने उसकी ओर देखा एक पल के लिए सोचकर गर्दन को झटका दिया और आगे बढ़ गया...उसे आगे बढ़ते देख एक बुजुर्ग महिला जो अपने भवन की छत्त से देख रही थी बोली-आगे मत जाओ बालक, राह में पागल हाथी आ रहा है,तनिक सुरक्षित रहकर विश्राम कर लो। शिष्य ने सुना पर अनसुना कर दिया। सामने देखा तो हाथी दौड़ता हुआ आ रहा था,महावत बार बार अंकुश से रोकने की कोशिश कर रहा था तो दूसरी ओर शिष्य रास्ते पर बिना रुके आगे बढ़ रहा था। हर आवाज को दरकिनार करते हुए ...। हाथी नजदीक आ रहा था, लोग आवाज़ लगा रहे थे,पर सबको सुनकर भी अनसुना कर रहा था। महावत ने ऊपर से हाथी पर अंकुश से प्रहार करते हुए कहा-हट जाओ,हाथी मार देगा,पगला गया है,हाथ जोड़कर कह रहा हूँ सुन लो। पर शिष्य तो बेख़ौप आगे और आगे....पल पल हाथी के पास जाता जा रहा था। आखिर वो पल आ ही गया,हाथी जोर से चिघाड़ा और अपनी लंबी सूंड के एक प्रहार से शिष्य को उछाल दिया।देखते ही देखते शिष्य सूखे पत्ते सा आसमान में उड़ता हुआ एक घ...

सासु माँ

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 दोपहर में गपशप के इरादे से जमीला बेगम जब अपनी पडौसन निर्मला के घर आई, तो देखा वह रसोई के काम में व्यस्त थी। अपनी आदत से लाचार जमीला बेगम ने धीरे से इधर-उधर ताक झांक की तो अपने कमरे में बहू चादर तानकर आराम से सोई थी। “ज़माना खराब आ गया है,बुढ़ापे में सास को  आराम करना चाहिए वो बेचारी काम में लगी है और बहू चादर तानकर आराम से सो रही है।” जमीला ने आंगन में बंधी तनी पर सूखते कपड़ों, सूखे कपड़ों के ढेर और धुले बर्तनों की तरफ़ देखते हुए मुंह बिचकाकर कहा। “ऐसा नहीं है बहन,बहू की तबीयत ठीक नहीं है, वरना तो वह मुझे कोई काम नहीं करने देती.” निर्मला जी ने उत्तर दिया। “तुम तो ठहरी निरी भोली....तुम जानती नहीं हो आजकल की बहुओं को वे  होती ही कामचोर है। फैशन चाहे जितनी करवा लो और मोबाइल पर सारे दिन बतिया लो... वह काम से बचने के लिए जब-तब बीमारी का बहाना बना लेती हैं। मेरे जमील की  बहू भी ऐसी ही है.” कहकर बेगम निर्मलाजी की बहू के साथ साथ ख़ुद की बहु की भी बुराई करने लगी। जमीला बेगम से मुखातिब होते हुए निर्मलाजी ने कहा “ऐसा नहीं है बेगम,जब हमारी बेटी की तबीयत ख़राब होती है, तब क्या हम...

सच टिफिन का

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नये घर में आये मुझे थोड़े ही दिन हुए थे। सामने वाले घर की हीरक जयंती मना चुकी  गोमती दादी को देखकर बहुत ख़ुश होती थी,जब भी दादी से बात होती, उनसे हमेशा कुछ न कुछ सीख मिल ही जाती थी। दादी अकेली रहती थीं, ऐसा नहीं कि उनका कोई नहीं था।भरापूरा घर-परिवार था, पर अलग-अलग रहता था। दादी का एक बेटा बेंगलुरु में, तो दूसरा उसी घर में अपने परिवार के साथ ऊपर के पोर्शन में रहता। मुझे अपनी छत के एक कोने से दिखाई देता रहता कि दादी का पोता दादी के लिए खाने का टिफिन नीचे लेकर आया करता। मुझे यह देखकर अच्छा लगता कि चलो, दादी के खाने-पीने का ध्यान बेटा अलग रहकर भी करता है। दादी भी हमेशा मस्त अंदाज़ में कहतीं, ”मुझे खाने-पीने का बहुत शौक है, जो मन करता है, कहकर बनवा लेती हूं।‘’ मैं दादी से बहुत बातें करती,जब भी मौका मिलता मैं भागकर पहुंच जाती उनके पास,तो कभी वे आवाज़ लगा देती मेरे गेट पर आकर। दादी हमेशा अपने बेटे-बहू, पोते-पोती की तारीफ़ ही करतीं रहती,उनको जितना मैंने जाना उतना ही उनसे जुड़ती गयी। दादी  के बेटा-बहू मुझे रूखे से इंसान लगते,कभी उन्हें अपनी माँ के साथ कहीं आते-जाते, हंसते-बोलते नहीं देखा ...

संस्कारों की बगिया

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 एक सेठ के पांच बेटे थे,सभी का विवाह हो चुका था।छोटी बहू को बचपन से ही अभिभावकों से अच्छे संस्कार मिलने के कारण उसके रोम-रोम में संस्कार बस गया था।ससुराल में घर का सारा काम तो नौकर-चाकर करते थे,बहुओं को  केवल खाना बनाना होता था,इसमें भी खटपट होती रहती थी। छोटी बहू को संस्कार मिले थे कि अपना काम स्वयं करना चाहिए और प्रेम से मिलजुल कर रहना चाहिये। उसने युक्ति खोज निकाली और सुबह जल्दी स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनकर पहले ही रसोई में जा बैठी। जेठानियों ने टोका, लेकिन उसने प्रेम से रसोई बनाई और सबको प्रेम से भोजन कराया। सभी ने बड़े प्रेम से भोजन किया और प्रसन्न हुए। इसके बाद सास छोटी बहू के पास जाकर बोली, "बहू, तू सबसे छोटी है, तू रसोई क्यों बनाती है? तेरी चार जेठानियां हैं. वे खाना बनाएंगी।" बहू बोली, "मांजी, कोई भूखा अतिथि घर आता है, तो उसको आप भोजन क्यों कराती हैं?" "बहू शास्त्रों में लिखा है कि अतिथि भगवान का रूप होता है. भोजन पाकर वह तृप्त होता है, तो भोजन करानेवाले को बड़ा पुण्य मिलता है." "मांजी, अतिथि को भोजन कराने से पुण्य होता है, तो क्या घरवालों क...

समझदारी से निर्णय

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  बंदरों का एक बड़ा कुनबा घने जंगल में रहता था। उनका नेता शक्तिशाली,समझदार और अपनी उदारता,बुद्धिमत्ता के लिए जाना जाता था। वह अपनी प्रजा को उनकी सुरक्षा के बारे में हर तरह के निर्देश देता और उनकी रक्षा करता। एक दिन युवा और तरुण टोली को समझाते हुए उसने कहा, “मेरे दोस्तो, जंगल में किसी भी नई चीज को खाने या पीने से पहले उसकी जांच अवश्य कर लें या फिर उसके बारे में मुझसे पूछ लें।” सारे बंदर अपने नेता की बात समझ गए। एक दिन बंदरों का समूह अपने भोजन की तलाश में एक ऐसे शांत व सुंदर तालाब के पास पहुंचे, जिसके आसपास लंबे बांसों का झुंड था। उन्हें बहुत प्यास लगी थी। पानी पीने के लिए वे वहां रुकने लगे, तभी एक बंदर चिल्लाया, “रुको! तुम्हें याद नहीं कि हमारे नेता ने क्या कहा था?”  “नहीं! हमें सब कुछ याद है। हम अपने नेता के आने तक तालाब से पानी नहीं पीएंगे,” सभी ने एक आवाज में आश्वासन दिया। अपने संकेत से उन्होंने अपने नेता को संदेश भेजे और सब वहीं बैठ कर इंतजार करने लगे।  जब उनका नेता वहां आया तो उसने तालाब का एक चक्कर काटा और उसके आसपास की जमीन को ध्यान से देखा, जांचा-परखा।  फिर ...

रिश्ते की समझ

 लड़का और लड़की की शादी तो हो चुकी थी, पर दोनों में बन नहीं रही थी। पंडित ने कुंडली के 36 गुण मिला कर शादी का नारियल फोड़वाया था, पर शादी के साल भर बाद ही चिकचिक शुरू हो गई थी। पत्नी अपने ससुराल वालों के उन अवगुणों का भी पोस्टमार्टम कर लेती, जिन्हें कोई और देख ही नहीं पाता था। लगता था कि अब तलाक, तो तब तलाक। पूरा घर तबाह होता नज़र आ रहा था।  सबने कोशिश कर ली कि किसी तरह यह रिश्ता बच जाए, दो परिवार तबाही के दंश से बच जाएं, पर सारी कोशिशें व्यर्थ थीं। जो भी घर आता, पत्नी अपने पति की ढेरों खामियां गिनाती और कहती कि उसके साथ रहना असम्भव है।  वो कहती कि इसके साथ तो एक मिनट भी नहीं रहा जा सकता। दो बच्चे हो चुके हैं और बच्चों की खातिर किसी तरह ज़िंदगी कट रही है। उनके कटु रिश्तों की यह कहानी पूरे मुहल्ले में चर्चा का विषय बनी हुई थी। ऐसे में एक दिन एक आदमी सब्जी बेचता हुआ उनके घर आ पहुंचा। उस दिन घर में सब्जी नहीं थी।  “ऐ सब्जी वाले, तुम्हारे पास क्या-क्या सब्जियां हैं?” “बहन, मेरे पास आलू, बैंगन, टमाटर, भिंडी और गोभी है।” “जरा दिखाओ तो सब्जियां कैसी हैं? सब्जी वाले ने सब्जी...

सच्ची शिक्षा.......

बड़ी सी चमचमाती एक कार आकर फुटपाथ के किनारे रूकी, कार में ही मोबाईल से बातें करते हुए महिला ने अपनी बच्ची से कहा, जा उस बुढिया से पूछ आम कैंसे दिये, लड़की कार से उतरतें ही बोली- ओये,बुढिया ! आम कैसे दिये ? 40 रूपयें किलो,70 के दो किलो बेबी जी...  कार में बैठी माँ की तरफ देखा तो उसने अंगुलियों से 2 का इशारा किया तो बेटी ने कहा-सुन बुढ़िया 2 किलो दे दे। आम लेते ही उस लड़की ने सौ रूपयें का नोट उस आम वाली महिला को फेंक कर दिया और आकर कार में बैठ गयी, कार चलने वाली थी कि  तभी अचानक किसी ने कार के सीसे पर दस्तक दी, एक छोटी सी बच्ची जो हाथ में 30 रूपयें कार में बैठी उस औरत को देते हुए, बोलती हैं आंटी जी यें आपके  बचे हुए 30 रूपयें हैं,दीदी शायद भूल गयी थी ।  कार में बैठी औरत ने घमंड में कहा तुम रख लों, उस बच्ची ने बड़ी ही मासूमियत और मिठास से कहा- नहीं आंटी जी हमारे जितने पैंसे बनते थें हमने ले लिये, हम इसे नहीं रख सकतें, मैं और मेरी दादीजी आपकी आभारी है, आप हमारी दुकान पर आए और मुझे विश्वास है आपको आम अच्छे लगेगें,यह हमारे बगीचे के आम है जिन्हें दादीजी खुद चुनकर लाती है। आपको अ...

संतोष ही सुख है.....

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संतोष धन सज्जनपुर में एक गरीब आदमी रहता था। बहुत मेहनत करने के बाद भी वह निर्धन ही रहता,कई बार तो उसे भूखे ही रात गुजारनी पड़ती। इस मुसीबत से छुटकारा पाने का कोई उपाय उसे न सूझता। एक दिन उसे एक महात्मा जी मिल गए। उसकी सेवा से प्रसन्न हो उन्होंने उसे भगवान की आराधना का एक मंत्र दिया।  उसने उस मंत्र से भगवान की साधना करने लगा और काम भी उसी लगन से करता रहा।  एक दिन देव उसके सामने प्रकट हुये। देव ने उससे कहा, ”मैं तुम्हारी आराधना से प्रसन्न हूं। बोलो क्या चाहते हो? निर्भय होकर मांगो।“ एकाएक देव को सामने देखकर वह घबरा गया। क्या मांगा जाए, यह वह तुरंत तय ही न कर सका, इसलिए हड़बड़ाहट में बोला, ”देव, इस समय तो नहीं, हां मैं कल आपसे मांग लूंगा।“ घर जाकर वह व्यक्ति सोच में पड़ गया कि क्या मांगा जाए? उसके मन में आया कि रहने के लिए घर नहीं है, इसलिए वही मांगा जाए। घर भी कैसा मांगा जाए, वह उस पर विचार करने लगा। ये सेठजी का मकान सबसे बड़ा है वैसा मांग लूँ,तो मैं भी सेठ हो जाऊं, तो अच्छा रहे। यह विचार कर उसने सेठजी जैसा व्यापार मांगने का निर्णय कर लिया। इस विचार के आने के बाद वह सोचने लगा कि कई ब...