सहेली
मीनाक्षी लाइब्रेरी के दरवाजे पर इस तरह खड़ी हो गई कि जाह्नवी उसके अंदर नहीं आ पाए, जानबूझकर मीनाक्षी ऐसे काम करती जिससे जाह्नवी को हैरान होना पड़े। जाह्नवी जानती थी कि मीनाक्षी से कुछ भी कहना बेकार है, इसलिए वो वापस पलट गई। पीछे जोरदार ठहाका लगा। जाह्नवी की आंखों मे नमी उतर आई। कभी वे दोनों पक्की सहेलियां हुआ करती थी। हर बात का साथ था दोनों का। पर आज केवल प्रतिद्वंद्वी। उनका दोस्ताना देख कितनी कोशिश चलती रहती कि इस दोस्ती मे दरार पड़ जाए। मालुम तो सबको ही था कि मीनाक्षी कान की कितनी कच्ची है,जाह्नवी ही उसे संभाल रखती। "पहले कही बात को परखो फिर विश्वास करो" कितनी बार तो जाह्नवी ये बात मीनाक्षी के कानों मे डाल चुकी थी, उसे कहां पता था कि उसकी सीख ऐसे हवा मे उड़ जाएगी। दोनों पढ़ाई के साथ लॉन्ग टेनिस मे भी माहिर थीं। इस बार खिलाड़ियों का चयन होना था स्टेट लेवल पर। शुरुआती प्रतियोगिता में ही दोनों आमने-सामने थीं। ये केवल इत्तेफाक था कि जाह्नवी का लगाया जोरदार शॉट, मीनाक्षी की उगलियों को चोटिल कर गया। इसी आधार पर उसे प्रतियोगिता से बाहर होना पड़ा। जाह्नवी क...