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Showing posts from July, 2023

रात्रि में करते है जहां भोले बाबा विश्राम -ओंकारेश्वर धाम

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  जहां रात्रि विश्राम करते है भोलेनाथ, वो ही है ओंकारेश्वर पावन धाम। बाबा भोलेनाथ के ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योतिर्लिंग है ओंकारेश्वर जो मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में ॐ के आकार में बने मांधाता द्वीप पर स्थित है। यहां पर भगवान शिव नर्मदा नदी के किनारे ॐ के आकार वाले पहाड़ पर विराजमान हैं।  यहां मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ तीनों लोक का भ्रमण करके प्रतिदिन इसी मंदिर में रात को सोने के लिए आते हैं। यहां सभी देवों के  संग विराजते हैं भगवान शिव। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के इंदौर शहर से लगभग 78 किमी की दूरी पर नर्मदा नदी के किनारे स्थित है।यह एकमात्र मंदिर है जो नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित है। यहां पर भगवान शिव नदी के दोनो तट पर स्थित हैं। महादेव को यहां पर ममलेश्वर व अमलेश्वर के रूप में पूजा जाता है।  ओंकारेश्वर मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां पर दर्शन एवं पूजन करने पर व्यक्ति के सारे पाप दूर हो जाते हैं. महादेव के मंदिर का बड़ा रहस्य उज्जैन स्थिति महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की भस्म आरती की तरह ओंकारेश्वर मंदिर की शयन आरती विश्व प्रसिद्ध है। हालांंकि ओ...

अचलेश्वर महादेव -जहां होती है भोलेनाथ के अंगूठे की पूजा

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  अंगूठे की होती है जहां पूजा,शिवलिंग बदलता है दिन में तीन बार रंग ऐसे ही दिव्य शिव धाम की मानस यात्रा पर आज चलते है। भगवान आशुतोष की महिमा और माया कौन जान पाया है। जितने उनके भक्त,उतनी ही प्रगाढ़ आस्था और आस्था ने बनाएं उनके दिव्य धाम और जितने शिवालय उतनी ही उनकी विशिष्ठ कथा। आज भोलेनाथ के एक और दिव्य धाम की यात्रा करते है,जिसे अर्ध काशी भी कहा जाता है।वह पावन स्थान है राजस्थान के अर्बुदाचल पर्वत पर, अर्बुदाचल अर्थात् माउंट आबू।यहां विराजमान है अचलेश्वर महादेव के रूप में।  माउंट आबू से 11 किलोमीटर दूर अचलगढ़ में  विराजित भोलेनाथ की यहां की गाथा ही निराली है। सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता श्री विजय गोठवाल बताते है कि यहां भोले बाबा के अंगूठे की पूजा की जाती है। मान्यता है कि यह पर्वत भगवान भूतभावन शिव के अंगूठे पर टिका है,अगर यहां से अंगूठा विलुप्त हुआ तो यह पर्वत भी समाप्त हो जायेगा। अंगूठे के नीचे शिवलिंग है और एक प्राकृतिक कुंड है जिसमे जितना भी जल अर्पित करो वो भरता नहीं है और कहां जाता है यह भी अभी तक पता नहीं है।इसी अंगूठे के नीचे ही है अचलेश्वर महादेव जी का विग्रह...

रहस्य सोमनाथ मंदिर के दरवाजों का

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 विधर्मियीं ने जब भी भारत पर हमले किए  उनके निशाने पर होते थे उस समय के संस्कार और अकूत संपदा से भरे हुए वे मंदिर जो समाज की संपत्ति हुआ करते थे। प्राचीन समय में ऐसे अनेक उदाहरण है जब राजा अपना सर्वस्व मंदिर को समर्पित कर देता था और जब राज्य को जरूरत होती थी तो उसी मंदिर से वापस मिल जाया करता था । मजहबी आक्रांताओं के लिए मंदिर केवल सोना चांदी लूट के लिए नहीं होते थे बल्कि इसलिए भी निशाने पर होते थे क्योंकि वे सनातन धर्म के आस्था केंद्र होते है। उनको बचाने के लिए भारत में लाखों हिंदुओं ने अपना सर्वस्व न्योछावर किया है जिनमें 70 फीसदी से ज्यादा वो लोग हैं जो निहत्थे ही आक्रमण की सुन अपने आराध्य को बचाने के लिए दौड़ते पड़ते थे । 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहले स्थान पर माने जाने वाले सोमनाथ मंदिर की गाथा भी ऐसी ही है। मुहम्मद गजनी ने जब सोमनाथ पर आक्रमण किया तो लूट ले गया था सारी धन संपदा,खंडित कर गया था ज्योतिलिंग,आहत कर गया था आस्था।  पर एक सवाल आज भी ज़िंदा है कि सोमनाथ मंदिर के मूल चांदी जड़ित कलात्मक दरवाजे कहां हैं? महमूद तो उन्हें गज़नी ले गया था। क्या भारत में फिर वापस ल...

हर विध्वंस के बाद और दिव्य बना सोमनाथ का धाम

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 भगवान आशुतोष के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक गुजरात के प्रभाष क्षेत्र में सोमनाथ के रूप में विराजित है।  जैसा कि आपने पिछले अंक में पढ़ा चंद्रमा को इस स्थान पर भगवान शिव की कृपा से क्षय के श्राप से मुक्ति मिली थी । उसके बाद चंद्रमा और अन्य देवताओं के आग्रह पर लोक कल्याण की भावना से भगवान आशुतोष और मां जगत जननी पार्वती जी ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां विराजित हुए।  चंद्रमा का दूसरा नाम है सोम भी है, उन्होंने भगवान भोलेनाथ को अपना सर्वस्व मान लिया था इस स्थान को और ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ ज्योतिर्लिंग कहते हैं।  यहां पहली बार मंदिर कब बना इसकी तो कोई जानकारी  नहीं है  परंतु तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि मंदिर का पुनर्निर्माण 649 ईस्वी में वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने किया। पहली बार इस मंदिर को 725 ईस्वी में सिन्ध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने तुड़वा दिया था। फिर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण करवाया।  इसके बाद लुटेरे महमूद गजनवी ने सन् 1024 में कुछ 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी संपत्ति लूटी और उसे नष्...

सोमनाथ - चंद्रमा हुआ जहां शाप मुक्त

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 बाबा भोलेनाथ की मानस यात्रा पर इस बार चलते हैं उस स्थान पर जिस पर 17 बार विधर्मियों ने हमले किये और हर बार बाबा भोले के भक्तों ने पहले से दिव्य और भव्य धाम का निर्माण किया। आज बात करेंगे गुजरात के प्रभास क्षेत्र में सागर के किनारे ज्योति रूप में विराजमान भगवान आशुतोष जिन्हें सोमनाथ कहकर यहां पूजा जाता है। सोम चंद्रमा को कहा जाता है, चंद्रमा ने अपना सर्वस्व नाथ मानकर उनकी पूजा की थी,इसलिए सोमनाथ ज्योतिलिंग इसका नाम पड़ा। यह स्थान भगवान गौरी शंकर की कृपा से चंद्रमा की क्षय के श्राप से मुक्ति का स्थान है।  पहले यह क्षेत्र प्रभासक्षेत्र के नाम से जाना जाता था। यहीं भगवान्‌ श्रीकृष्ण ने जरा नामक व्याध के बाण को निमित्त बनाकर अपनी लीला का संवरण किया था। कथा चंद्रमा के श्राप मुक्ति की दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएं थीं। उन सभी का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। किंतु चंद्रमा का समस्त अनुराग व प्रेम उनमें से केवल रोहिणी के प्रति ही रहता था। उनके इस कृत्य से दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत अप्रसन्न रहती थीं। उन्होंने अपनी यह व्यथा-कथा अपने पिता को सुनाई। दक्ष प्रजापति ने इसके लिए च...

बाबा महाकालेश्वर का इतिहास और परंपराएं

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  मुगलों से बचाने 500 वर्षों तक कुएं में रखा था ज्योतिर्लिंग, जानिए कहानी पुनर्निर्माण की। मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग देश का इकलौता दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग हैं। यहां भगवान शिव भक्तों को कालों के काल महाकाल के रूप में दर्शन देते हैं। महाकाल मंदिर से जुड़ी कई प्राचीन परंपराएं और रहस्य हैं। कहा जाता है कि अवंतिकापुरी के राजा विक्रमादित्य बाबा महाकाल के भक्त थे और भगवान शिव के ही आशीष से उन्होंने यहां करीब 132 सालों तक शासन किया। महाकालेश्वर मंदिर कितना प्राचीन है इसकी सटीक जानकारी मिलना बेहद मुश्किल है। लेकिन सदियों से यह स्थान लोगों की आस्था का केंद्र है। मंदिर का इतिहास बेहद रोचक है। मुगलों और ब्रिटिश हुकूमत के अधीन रहने के बाद भी देश के इस पावन स्थल ने अपनी पुरातन पहचान को नहीं खोया। सनातन धर्म की पताका को ऊंचा रखने के लिए धर्म की रक्षा से जुड़े लोगों ने ज्योतिर्लिंग को तरह-तरह के जतन कर आक्रांताओं से सुरक्षित रखा। कई दशक बीत जाने के बाद वर्तमान दौर में मंदिर का एक अलग ही स्वरूप दर्शनार्थियों को देखने को मिलता है, वहीं अब प्रधानमंत्री नरेंद्र ...

मृत्युंजयी है महाकालेश्वर...

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 सावन का महीना और सोमवार भी...अमृत काल ही कहेंगे इसे तो।भगवान आशुतोष सदाशिव की कृपा से ही शिव का सानिध्य मिल पाता है। सावन में शिव धामों के मानस दर्शन की श्रृंखला में आज मानस यात्रा करेंगे, एक ज्योतिर्लिंग की। बात जब ज्योतिर्लिंग की आती है तो बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम सामने आ जाते है,इन नामों में से एक नाम है महाकालेश्वर बाबा भोलेनाथ का। जो मध्य प्रदेश के उज्जैन में विराजित है। मान्यता है कि दक्षिणामुखी मृत्युंजय भगवान श्री महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में विराजमान होकर सृष्टि का संचार करते हैं। मध्यप्रदेश के हृदय स्थल में स्थित है तीर्थ भूमि उज्जैन।  उज्जैन पांच हजार साल पुराना नगर माना जाता है। इसे अवंती, अवंतिका, उज्जयिनी, विशाला, नंदिनी, अमरावती, पद्मावती, प्रतिकल्पा, कुशस्थली जैसे नामों से जाना जाता है। महाकालेश्वर हैं स्वयंभू शिवपुराण की एक कथा के अनुसार, दूषण नामक दैत्य के अत्याचार से उज्जयिनी के निवासी काफी परेशान हो गए थे। तब उन लोगों ने भगवान शिव की प्रार्थना की थी तो वह ज्योति के रूप में प्रकट हुए थे और राक्षस का संहार किया था। इसके बाद उज्जयिनी में बसे अपने भक्तों...

जयपुर बसावट से पहले ही प्रकट हुए जयपुर के ताड़क बाबा, ताड़केश्वरनाथ

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 सावन के पावन महीने में भगवान भोलेनाथ के दिव्य धामों की मानस यात्रा की इस श्रृंखला में आज चलते है यूनेस्को द्वारा हैरिटेज सिटी में शामिल किए गए गुलाबी नगर की ओर। वीरों,रणबांकुरों की धरती राजस्थान भक्तों और धर्मप्राण जनता का साथ पाकर अपने ओज से द्विगुणित हो गई। आज उसी राजस्थान की राजधानी जयपुर,जो अपने स्थापना के समय जैपर कहलाता था की बात करते है। जयपुर की स्थापना से भी पहले का है शिव का यह स्थान जयपुर की स्थापना वर्ष 1727 में हुई। शहर की स्थापना आमेर के महाराज जय सिंह द्वितीय ने की थी और उन्हीं के नाम पर शहर का नाम जयपुर पड़ा। अपनी स्थापना के समय जयपुर का नाम जैपर था, जो कालांतर में जयपुर हो गया।  इसी जयपुर की स्थापना से पहले से ही जहां स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुआ,उसी स्थान पर आज ताड़केश्वर महादेव का दिव्य, अद्भुत और अलौकिक धाम है। कथा बाबा के प्रकट होने की बताते है कि मंदिर के स्थान पर पहले यहां शमशान भूमि थी और ताड़ के बहुत सारे वृक्ष लगे हुए थे। यहां जब गाय आती थी तो उनमें से एक गाय प्रतिदिन एक स्थान विशेष पर स्वत: ही दूध की धार छोड़ने लगती थी। उस स्थान पर से जब मिट्टी हटाई गई...

राजस्थान में है बारह वां ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर

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 सावन के पावन महीने में एक बार फिर चलते है एक और बाबा भोलेनाथ के दिव्य धाम की मानस यात्रा पर। इस बार की मानस यात्रा है एक ज्योतिर्लिंग की। हर शिव भक्त जानता है ज्योतिर्लिंग के बारे में,क्योंकि वो भगवान शिव की स्तुति भी करता है। इस मंत्र से - सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।  उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्॥ केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकियां भीमशंकरम्।  वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे॥ वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।  सेतूबन्धे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये॥ द्वादशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्।  सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥ यं यं काममपेक्ष्यैव पठिष्यन्ति नरोत्तमाः।  तस्य तस्य फलप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः॥ इसमें द्वादश ज्योतिर्लिंग का वर्णन है, जबकि हम हर गली / कॉलोनी  में शिवालय देख सकते है अपने भारत में। शिवलिंग भक्तों द्वारा स्थापित किए जाते है और ज्योतिर्लिंग स्वयं भगवान शिव के ज्योतिर्मय स्वरूप में प्राकृतिक रूप से वहां प्रकट होकर स्थापित होने का स्वयं द्वारा दिया गया वचन है। ऊपर वाली भोलेनाथ के द्वादश ज्योतिर्लिंग...

एकलिंग नाथजी - महाराणा प्रताप थे जिनके दीवान

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  मेवाड़ के शासक एकलिंग नाथ जी  राजस्थान का नाम आते ही जो अनेक चित्र दृष्टि पटल पर उभरते हैं उनमें से प्रमुख हैं महाराणा प्रताप हो या बप्पा रावल का नाम श्रद्धा से लिया गया है। मेवाड़ की पाग और  तलवार देश-धर्म के लिए सदा ऊंची ही मिली उस मेवाड़ के शासक माने जाने वाले भगवान आशुतोष के एक रूप एकलिंग नाथ जी के दर्शन की मानस यात्रा करते है आज । सावन के पवित्र माह में एक और शिव धाम की मानस यात्रा में चलिए,आज मेवाड़ के शासक एकलिंग नाथ जी कैलाशपुरी (उदयपुर) के दर्शन को। जिधर से भी एकलिंग दीवान निकलते,शत्रु गाजर मूली की तरह कटे मिलते,क्योंकि जब शासन के रक्षक ही स्वयं महाकाल हो तो धर्म की पताका तो फहरेगी ही। भगवान आशुतोष को शासक मानकर मेवाड़ के महाराणा उनके दीवान बनकर ही मेवाड़ की सेवा करते रहे,आज भी उन दीवानों का नाम एकलिंग नाथ जी की कृपा से श्रद्धा से लिया जाता है,चाहे राणा हमीर हो,बप्पा रावल हो,राणा रायमल हो,महाराणा प्रताप हो या राणा अमरसिंह। * सत्य सनातन चिर पुरातन नित नूतन * की यह यात्रा अबाध चलती रहे,अपनी नई पीढ़ी को जोड़ते रहें,इतिहास से,संस्कार से,संस्कृति से। राजस्थान मे...

बेणेश्वर महादेव जहां भरता है आदिवासी कुंभ

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  आदिवासियों को सनातन से दूर करने के षड्यंत्रों को मुंहतोड़ जबाव देता बेणेश्वर महादेव धाम, जहां भरता है आदिवासी कुंभ। सावन शुरू हो चुका है,सावन  अर्थात् बाबा भोलेनाथ को समर्पित माह। इस वर्ष अधि मास के कारण दो महीने शिव भक्तों को मिलेंगे,अपने भोलेनाथ को रिझाने के लिए। आइए,हम भी इस पावन मास में मानस यात्रा करते है भगवान आशुतोष के पावन धामों की। राजस्थान के बांसवाड़ा से 45 किमी और डूंगरपुर से 68 किमी की दूरी पर स्थित बेणेश्वर धाम में विराजित है बाबा महाकाल। सोम, माही व जाखम नदियों के पवित्र संगम पर स्थित लगभग 250 एकड़ में फैला टापू वाला यह पावन धाम गुजरात,राजस्थान और मध्य प्रदेश के वनवासी समाज को अपनी सनातन संस्कृति -धर्म से जोड़ता है। यहां माघ पूर्णिमा पर जो मेला भरता है उसे आदिवासी कुंभ भी कहते है,यह राजस्थान के सबसे बड़े मेले में शामिल है। तीनों नदियों के संगम पर स्थित इस स्थान पर डुबकी लगाने के पश्चात भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए बेणेश्वर मंदिर जाने की तमन्ना हर किसी की रहती है। बेणेश्वर के मंदिर  परिसर में लगने वाला यह मेला भगवान शिव को समर्पित होता है। मेले के दौरान ब...

गुरु पूर्णिमा - वर्ण व्यवस्था को जाति से जोड़ने वालों को मुंह तोड़ जवाब देते महर्षि वेद व्यास

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  जिनकी संतानें थी कौरव और पांडव: जानिए कौन हैं कृष्ण द्वैपायन, जिनका जन्मदिन बन गया ‘गुरु पूर्णिमा’ आज  गुरु पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जा रहा है। लेकिन क्यों? हमें यह भी जानना चाहिए कि इसके पीछे के कारण क्या हैं? दरअसल, ये महर्षि वेद-व्यास के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। वही महर्षि वेद-व्यास, जिन्होंने वेदों का विभाजन किया और महाभारत जैसे महान ग्रन्थ की रचना की। वो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं लेकिन अब तक आपने उनके बारे में जनश्रुतियों में ही सुना होगा। लेकिन, हमारी अति-प्राचीन पुस्तकें क्या कहती हैं? दरअसल, अच्छे से समझाने के लिए हमें कहानी तब से शुरू करनी पड़ेगी, जब महाराज शांतनु के दोनों बेटे विचित्रवीर्य और चित्रांगद की मृत्यु हो गई थी। चूँकि, हमेशा राज्य के प्रति वफादार रहने और आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा कर के देवव्रत भीष्म ने अपने पिता का सत्यवती से रिश्ता कराया था, ऐसे में उन्होंने राजा बनने से इनकार कर दिया। कुछ समय पहले भीष्म ने जो सब त्यागा वो उनके सामने फिर से खड़ा हो गया। माँ सत्यवती की बातों को भी भीष्म ने प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण मानने से इनकार कर...